कभी परिवार का दबाव, कभी समाज की बेरुख़ी, कभी भूख और बेबसी, Jaanu की ज़िंदगी में मुश्किलों की कोई कमी नहीं रही। लेकिन कहते हैं न, “जहां हिम्मत होती है, वहीं रास्ते निकल आते हैं।” कर्नाटक के रायचूर की गलियों से निकलकर बेंगलुरु तक का उनका सफ़र आसान नहीं था।
तीसरी क्लास में ही उन्हें एहसास हो गया था कि वो बाकी बच्चों से अलग हैं। और फिर भी… जानू ने हार नहीं मानी। घर छोड़कर अपने एक नए सफ़र की तलाश में निकली। आज वही Jaanu भारत की पहली Transgender Ventriloquist हैं, जिनके हाथ की गुड़िया लाखों लोगों को हंसाती है और दिलों में उम्मीद जगाती है।
बचपन की शुरुआत और अलग पहचान
कर्नाटक के रायचूर की गलियों में पली-बढ़ी Jaanu जिनका असली नाम अब्दुल कुद्दूस था, का बचपन दूसरों बच्चों की तरह बिल्कुल नॉर्मल नहीं था। बहुत छोटी उम्र से ही उन्हें लगता था कि वो बाकी लड़कों से अलग हैं। तीसरी क्लास में पढ़ते हुए ही उन्हें महसूस हुआ कि उनके अंदर कुछ ऐसा है जिसे समझ पाना आसान नहीं है। उनके शौक (Interest) लड़कियों जैसे थे। उन्हें साड़ी पहनना अच्छा लगता था, मेकअप करने में मज़ा आता था और डांस करना उनका शौक़ था।

लेकिन ये सब देखकर परिवार और समाज का रवैया बदलने लगा। घर में अक्सर उनसे पूछा जाता, “तुम लड़कियों जैसी हरकत क्यों करते हो? लड़कियों के कपड़े और खेल तुम्हें क्यों पसंद हैं?” Jaanu के लिए ये सवाल आसान नहीं था, क्योंकि वो खुद भी उस समय अपनी पहचान को लेकर उलझन में थीं।
समाज के ताने और अंधविश्वास
जब घरवालों ने देखा कि Jaanu का बर्ताव औरों से अलग है, तो उन्हें भूत-प्रेत का असर मान लिया गया। कभी मंदिर में बंद किया गया, कभी दरगाह ले जाया गया, तो कभी नदियों के किनारे टोटके कराए गए। परिवार डर गया था कि लोग उन्हें ताना देंगे कि उनका बेटा ‘लड़की जैसा’ क्यों है। Jaanu याद करती हैं कि कैसे उनकी बहनें जब उन्हें अकेले डांस या मेकअप करते देखतीं, तो मां को बता देती और फिर घर में डांट-फटकार होती। लेकिन Jaanu के लिए ये सब उनकी पहचान का हिस्सा था।
घर छोड़ने का फ़ैसला
16 साल की उम्र में अब्दुल कुद्दूस यानि Jaanu ने ठान लिया कि अब वो इस माहौल में और नहीं रह सकतीं। वो याद करते हुए बताती है कि ‘अभी मेरा इलेक्ट्रिशियन आईटीआई पूरा हो गया है। उनके फ्रेंड्स सारे काम करने के लिए जा रहे हैं। उन्होंने मां से कहा कि उनको बेंगलुरु जाकर काम करना है।” मां ने मना किया, लेकिन उनकी बहन ने 4000 रुपये देकर मदद की। यही पैसे लेकर Jaanu अकेले बेंगलुरु निकल पड़ीं।

शहर पहुंचते ही मुश्किलें सामने थीं, कहां रहेंगी, क्या खाएंगी, कौन मदद करेगा? शुरू में एक सीनियर दोस्त के साथ रहीं और फिर ब्यूटी पार्लर में काम करना शुरू किया। वहां उन्होंने मेहंदी लगाकर और क्लासेस लेकर अपनी पहली कमाई की।
जेंडर सर्जरी और नया मोड़
कमाए गए पैसों से Jaanu ने अपनी जेंडर सर्जरी कराई। ये उनकी ज़िंदगी का सबसे अहम मोड़ था। Jaanu ने अपना नाम ही अपनी ताक़त बना लिया। उन्होंने कहा, ‘Jaanu नाम का कोई धर्म या जाति नहीं है। इसमें जेंडर भी नहीं है। इसे कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। यही मेरी पहचान है।’ Jaanu नमाज़ भी पढ़ती हैं और पूजा भी करती हैं। उनके लिए इंसानियत सबसे ऊपर है।
लेकिन जैसे ही कोरोना महामारी आई, काम बंद हो गया और सारी बचत ख़त्म हो गई। उस दौरान उन्होंने अपने ग्रुप से काम मांगा, लेकिन जब उन्होंने बताया कि अब वो एक ट्रांसवुमन हैं, तो सभी ने उनसे दूरी बना ली। आर्थिक तंगी इतनी बढ़ गई कि उन्हें भीख तक मांगनी पड़ी, सड़क किनारे डिलीवरी बॉय से बचा हुआ खाना मांग कर पेट भरना पड़ा। रेड लाइट एरिया में भी दिन गुज़ारे।
मां से आख़िरी बातचीत
Jaanu को जब कोई रास्ता नज़र नहीं आया तो उन्होंने घर से मदद मांगने की कोशिश की। Jaanu ने मां से वीडियो कॉल करके कहा, कि ‘मैंने सर्जरी करा ली है। अब मैं लड़की बन चुकी हूं।’ उन्हें कुछ पैसों की ज़रूरत है। मां का जवाब दिल तोड़ने वाला था। ‘मैं अब तुझे नहीं जानती। अगली बार फोन मत करना। मैं सबको कह दूंगी कि तू एक्सीडेंट में मर गया।’ इतना सुनकर Jaanu अंदर से टूट गईं। लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय आगे बढ़ने का फ़ैसला किया। फिर Jaanu ने भूख मिटाने के लिए प्रोग्राम में डांस करना शुरू किया। जिससे कुछ चंद रुपये कमाने शुरू किए।
Jaanu ने थिएटर क्लासेस ज्वाइन कीं। वो एक्टिंग सीखना चाहती थीं। लेकिन यहां भी भेदभाव झेलना पड़ा। अक्सर उन्हें कहा जाता कि वो सिर्फ़ “किन्नर” का रोल करें। लेकिन Jaanu साफ़ कहती कि,“मैं किन्नर हूं, इसका मतलब ये नहीं कि मैं सिर्फ़ वही रोल करूं। मैं कोई भी किरदार निभा सकती हूं।”

वेंट्रिलोक्विज़्म से नया जीवन
एक दिन टीवी देखते हुए Jaanu ने देखा कि एक डॉल बोल रही है। पहले लगा कि शायद आवाज़ रिकॉर्ड की गई है, लेकिन फिर उन्हें पता चला कि ये एक आर्ट है- वेंट्रिलोक्विज़्म। उन्होंने ऑनलाइन क्लासेस लीं और धीरे-धीरे इस कला में महारत हासिल कर ली।
आज उनकी डॉल उनका सबसे बड़ा साथी है। वो कहती हैं, कि “जब मैं अपनी डॉल से बात करती हूं, मुझे लगता है जैसे मेरा कोई दोस्त है। जो बातें मैं नहीं कर पाती, वो मेरी डॉल कह देती है।” उनका पहला पपेट शो सिर्फ़ एक मिनट का था, वो भी एक बर्थडे पार्टी में। धीरे-धीरे उन्होंने गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों और स्कूल-कॉलेजों में भी परफॉर्म करना शुरू किया।
भारत की पहली Transgender Ventriloquist
Jaanu ने अपनी मेहनत और हुनर से इतिहास रच दिया। वो भारत की पहली ट्रांसजेंडर वेंट्रिलोक्विस्ट बनीं और हाल ही में उन्हें Influencer Book of World Records 2025 से सम्मानित किया गया। भले ही उनकी मां ने कहा हो कि “मां-बाप का दिल दुखाकर अवॉर्ड लेने से क्या फ़ायदा?” लेकिन Jaanu का जवाब साफ़ है कि, “अब मुझे अपनी कम्युनिटी के लिए काम करना है, ताकि कोई और मेरी तरह दर्द न झेले।”

सोशल मीडिया से पहचान
Jaanu ने सोशल मीडिया को अपनी ताकत बनाया। इंस्टाग्राम पर उन्होंने रील्स बनाना शुरू किया। आज उनके 75 हज़ार से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं और वीडियो पर लाखों व्यूज़ आते हैं। हालांकि गांव के लोग अक्सर उनकी मां को ताने देते, “देख तेरा बेटा ये कर रहा है, वो पहन रहा है।” लेकिन धीरे-धीरे लोग उनकी कला को पहचानने लगे।
Jaanu कहती हैं- ‘अगर बच्चों को बचपन से ही जेंडर इक्वालिटी सिखाई जाए, तो समाज की सोच बदलेगी। हमें शुरुआत वहीं से करनी होगी।’ भीख मांगने और सड़क पर खाना ढूंढने से लेकर वर्ल्ड रिकॉर्ड जीतने तक का सफ़र आसान नहीं था। लेकिन जानू ने साबित किया कि हिम्मत और हुनर के सामने हर मुश्किल छोटी पड़ जाती है। आज वो अपनी कला से लोगों को हंसी बांट रही हैं और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
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