उर्दू अदब की दुनिया में कुछ नाम ऐसे हैं जो अपने लफ़्ज़ों की सादगी, एहसास की गहराई और अंदाज़-ए-बयान की नर्मी से हमेशा के लिए दिलों में उतर जाते हैं। उन्हीं नामों में एक नाम है सैयद ऐतबार हुसैन साजिद, जो दुनिया-ए-शायरी में ऐतबार साजिद के नाम से जाने जाते हैं।
ज़िंदगी और तालीम
ऐतबार साजिद की पैदाइश 1 जुलाई 1948 को पाकिस्तान के तारीख़ी शहर मुल्तान में हुई। मुल्तान की मिट्टी में रूहानियत और सूफ़ियत रची-बसी है शायद यही वजह है कि ऐतबार साजिद के लफ़्ज़ों में भी एक नर्मी, एक तास्सुर और एक रूहानी कैफ़ियत दिखाई देती है। एम ए. तक तालीम हासिल करने के बाद उन्होंने पढ़ाने के पेशे को चुना और अपनी ज़िंदगी को इल्म और अदब के नाम कर दिया।
शुरू में वे गवर्नमेंट कॉलेज, नौशकी (बलूचिस्तान) में लेक्चरर रहे, और बाद में इस्लामाबाद में अपनी तालीमी और अदबी सरगर्मियां जारी रखीं। बतौर शिक्षक, उन्होंने न सिर्फ़ इल्म बांटा बल्कि अपने विद्यार्थियों में शायरी और अदब का ज़ौक़ भी पैदा किया।
शायरी और अदब का सफ़र
ऐतबार साजिद का शुमार उन शायरों में होता है जिन्होंने उर्दू शायरी को एक नया लहज़ा दिया। उनकी ग़ज़लों में रूमानियत है, नग़्मगी है, और साथ ही हिज्र और विसाल की वो कैफ़ियत भी, जो दिल को छू लेती है। उनकी शायरी में इश्क़-ए-मजाज़ी की कोमलता भी है और इश्क़-ए-हक़ीक़ी की रूहानियत भी। यही दो रंग ज़मीन और आसमान मिलकर ऐतबार साजिद की शायरी को एक मुकम्मल तास्सुर बख़्शते हैं।
उनकी ग़ज़लें सिर्फ़ मोहब्बत का बयान नहीं करतीं, बल्कि ज़िंदगी के एहसासात को भी बयां करती हैं तनहाई, इंतज़ार, मायूसी, उम्मीद, और इंसानी रिश्तों की गर्माहट।
ऐतबार साजिद की अहम किताबें
ऐतबार साजिद ने सिर्फ़ शायरी तक ख़ुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखकर ये साबित किया कि उनका कलम हर उम्र और हर ज़हन के लिए कुछ कहने को रखता है। उनकी मशहूर शायरी की किताबें हैं
- दस्तक बंद किवाड़ों पर
- आमद
- वही एक ज़ख्म गुलाब सा
- मुझे कोई शाम उधार दो
बच्चों के लिए लिखी उनकी किताबें हैं
- राजो की सरगुज़श्त
- आदमपुर का राजा
- फूल सी इक शहज़ादी
- मिट्टी की अशर्फियां
इन किताबों से साफ़ झलकता है कि ऐतबार साजिद के अंदर एक ऐसा शख़्स बसा हुआ है जो शब्दों से खेलना जानता है कभी उन्हें गीत बना देता है, कभी कहानी, और कभी बच्चों के मासूम ख्वाबों का हिस्सा।
उनकी शायरी का अंदाज़
ऐतबार साजिद की शायरी में जो बात सबसे ज़्यादा उभरकर आती है, वो है उनकी सादगी और सच्चाई। उनके अशआर पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे कोई अपने दिल की बात बहुत खामोशी से कह रहा हो- बिना तामझाम, बिना दिखावे। उनकी एक मशहूर ग़ज़ल का शेर देखिए
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर,
ऐतबार साजिद
इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ।
इस शेर में ज़िंदगी की फ़लसफ़ियाना गहराई छिपी है। इंसान जितना बोलता है, उतनी नई बातें निकलती हैं, मगर नतीजा वही अधूरापन। एक और शेर देखिए जिसमें ज़िंदगी की हक़ीक़त को कितनी सादगी से कहा गया है:
किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए,
ऐतबार साजिद
कैलेंडर के बदलने से मुक़द्दर कब बदलता है।
ये शेर सिर्फ़ कैलेंडर की बात नहीं करता, बल्कि इंसानी क़िस्मत की हक़ीक़त पर गहरी चोट करता है। और जब वो इश्क़ की बात करते हैं, तो उनके लफ़्ज़ दिल की गहराइयों में उतर जाते हैं
मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूं,
ऐतबार साजिद
जनम-दिन है अकेला रो रहा हूं।
ये शेर तन्हाई और दर्द का ऐसा बयान है जो हर उस इंसान का आईना बन जाता है जिसने कभी अकेलेपन को महसूस किया हो।
अदबी और तालीमी योगदान
ऐतबार साजिद का सफ़र सिर्फ़ शायरी तक महदूद नहीं रही। उन्होंने कॉलम निगारी, अदबी बातचीत, साहित्यिक शोध, और पत्रकारिता में भी अपनी पहचान बनाई। उनके लेख और कॉलम्स में समाज की नब्ज़ को पहचानने की क़ाबिलियत नज़र आती है। वो उन शख़्सियतों में से हैं जिन्होंने न सिर्फ़ क़लम को रूमानी जज़्बात तक रखा, बल्कि समाज और इंसानियत के मसाइल को भी अपने अफ़्कार में शामिल किया।
ऐतबार साजिद की शख़्सियत और मिज़ाज
ऐतबार साजिद का मिज़ाज पूरी तरह आशिक़ाना है मगर वो इश्क़ सिर्फ़ किसी एक चेहरे का नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी का है। उनकी ग़ज़लों में तग़ज़्ज़ुल की रौनक़ है, और नज़ाकत की मिठास भी। वो शब्दों को ऐसे बुनते हैं जैसे कोई उस्ताद कारीगर नक़्श उकेरता हो। बारीकी से, मोहब्बत से।
उनके अशआर में कोई भारी-भरकम अल्फ़ाज़ नहीं, मगर असर ऐसा कि दिल देर तक भीगता रहता है। वो कहते हैं तो लगता है कि जैसे हर जुमला किसी अपने ने कहा हो।
साजिद की शायरी में इश्क़ और इंसानियत
उनकी शायरी में इश्क़-ए-मजाज़ी और इश्क़-ए-हक़ीक़ी दोनों का संगम मिलता है। कहीं वो महबूब की आंखों की बात करते हैं, तो कहीं ख़ुदा की रज़ा की तलाश में भटकते हैं।
एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं,
ऐतबार साजिद
देखते हैं ये अज़िय्यत भी गवारा कर के।
ये शेर सिर्फ़ इश्क़ की दूरी नहीं बताता, बल्कि उस सब्र और इंतज़ार की दास्तान कहता है जो हर सच्चे मोहब्बत करने वाले के दिल में होती है। ऐतबार साजिद की शायरी को पढ़ते हुए एहसास होता है कि ये शख़्स सिर्फ़ शायर नहीं, बल्कि एहसासों का तर्ज़ुमान है। उन्होंने ज़िंदगी के हर रंग मोहब्बत, तन्हाई, उम्मीद, और दर्द को अपने लफ़्ज़ों में उतारा। उनकी शायरी में न कोई बनावट है, न दिखावा। बस एक सच्चा दिल है जो हर शेर में धड़कता है। वो कहते हैं,
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर,
ऐतबार साजिद
इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ।
और शायद यही ऐतबार साजिद की पहचान है हर बात में एक नई बात, हर एहसास में एक नया दर्द, और हर शेर में एक नई रूह। ऐतबार साजिद, वो शायर जो इश्क़ को अल्फ़ाज़ देता है, और अल्फ़ाज़ को जज़्बात। उनकी शायरी आज भी उन दिलों में बसती है जो तग़ज़्ज़ुल, तास्सुर और तन्हाई की ख़ामोश धुनों को समझते हैं।
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