कश्मीर को लोग उसकी ख़ूबसूरती, साफ़ हवाओं और पहाड़ों के लिए जानते हैं। लेकिन कश्मीर की असली पहचान उसके सेब (Apple) के बाग़ भी हैं। यहां का सेब सिर्फ़ एक फल नहीं, बल्कि लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी का ज़रिया भी है। इसी सेब की दुनिया को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं पुलवामा के डांगरपुरा के निवासी नज़ीर अहमद राथर, जो कई सालों से सेब (Apple) खेती से जुड़े हैं। हर साल कश्मीर के सेब भारत ही नहीं, बल्कि कई दूसरे देशों में भी भेजे जाते हैं, और वहां भी इसकी मिठास की काफ़ी मांग है। यही वजह है कि सेब का कारोबार कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।
हाई डेंसिटी सेब की बढ़ती लोकप्रियता
पुलवामा के डांगरपुरा के निवासी नज़ीर अहमद राथर कहते हैं कि हाई डेंसिटी सेब (Apple) की मांग हर साल बढ़ रही है। इस वैरायटी का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि सीज़न में सबसे पहले तैयार हो जाता है। लगभग 15 अगस्त से 25 अगस्त के बीच इसकी हार्वेस्टिंग शुरू हो जाती है। फल जल्दी तैयार होने की वजह से व्यापारी खुद बाग़ों तक पहुंचते हैं और वहीं से माल खरीदकर कोल्ड स्टोरेज या पैकिंग यूनिट्स में भेज देते हैं।

इस तरह बाग़वानों का समय और मेहनत दोनों बच जाते हैं, और उन्हें अच्छा रेट भी मिलता है। उनके बागों का सेब (Apple) बांग्लादेश से लेकर गल्फ देशों में भी एक्सपोर्ट किया जा रहा है। नज़ीर अहमद राथर आगे कहते हैं कि “सरकार की तरफ से भी हमें मदद मिल रही है, सब्सिडी भी मिल रही है।” सरकार नए बगीचे लगाने वालों को सब्सिडी और तकनीकी सलाह देती है। इससे बाग़वानों को मॉडर्न खेती से जुड़ने में आसानी हो रही है।
सितंबर–अक्टूबर की पसंदीदा किस्म: कुल्लू डिलीशियस सेब
नज़ीर अहमद राथर कहते हैं कि अगस्त के बाद सितंबर में कुल्लू डिलिशियस या डिलीशियस वैरायटी की तुड़ाई शुरू होती है। ये सेब (Apple) कलर, टेस्ट और आकार में बेहद पसंद किया जाता है। पहले इसे सिर्फ़ दिल्ली की मंडियों तक भेजा जाता था, लेकिन अब इसकी मांग पूरे भारत में है। व्यापारी इसे बड़ी मात्रा में खरीदते हैं और अलग-अलग शहरों में भेजते हैं। जिन बाग़वानों के सेब (Apple) में लाल रंग बेहतर होता है, उन्हें बाज़ार में ज़्यादा दाम मिलता है। वहीं जिनका रंग हल्का रहता है, उनकी कीमत थोड़ी कम हो जाती है। इसीलिए बाग़वान पूरी कोशिश करते हैं कि सेब को तब ही तोड़ें जब उसका रंग और मिठास पूरी तरह तैयार हो जाए।

डिलीशियस वैरायटी की स्टोरेज क्षमता
नज़ीर अहमद राथर का मानना हैं कि डिलीशियस वैरायटी की एक बड़ी ख़ासियत इसकी स्टोरेज क्षमता है। ये सेब दो से तीन महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है। कोल्ड स्टोरेज में तो ये काफी वक़्त तक ताज़ा रहता ही है, लेकिन अच्छी पैकिंग करके इसे घर में भी दो महीने तक रखा जा सकता है। जैसे-जैसे समय बीतता है, बाज़ार में इसकी कीमत भी बढ़ती जाती है। यही वजह है कि बाग़वान इस किस्म को बहुत पसंद करते हैं।
कश्मीर के ऊपरी इलाक़ों जैसे सेपियन और केलर के सेब (Apple) का रंग और आकार बहुत अच्छा होता है। ठंडे मौसम और प्राकृतिक परिस्थितियों की वजह से वहां के सेब बाज़ार में ज़्यादा पसंद किए जाते हैं। इन इलाक़ों के बाग़वान बताते हैं कि उन्हें बाकी क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर दाम मिलते हैं, जिससे उनकी आमदनी भी अच्छी होती है।
सही समय पर तुड़ाई क्यों ज़रूरी है?
नज़ीर अहमद राथर का कहना है कि कई बार बाग़वान सेब (Apple) को जल्दी तोड़ लेते हैं, सिर्फ़ इसलिए कि उस पर थोड़ा रंग आ गया हो। लेकिन ऐसा करने से सेब का शुगर कंटेंट यानी मिठास पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता। जब कच्चा सेब मंडी में पहुंचता है तो ग्राहक उसे पसंद नहीं करते और बाग़वान को कम कीमत मिलती है। इसलिए सलाह दी जाती है कि सेब को तभी हार्वेस्ट करें जब उसका रंग, स्वाद और मिठास पूरी तरह तैयार हो जाए।
कश्मीर का सेब (Apple) अपनी मिठास, सुगंध और क्वालिटी की वजह से दुनिया भर में फेमस है। चाहे हाई डेंसिटी हो, डिलीशियस हो या कोई और वैरायटी हर किस्म का सेब बाज़ार में पसंद किया जाता है। इसका स्वाद और बनावट इसे कई जगहों के सेब से अलग बनाते हैं।

मेहनत और लगन से फलता है सेब (Apple) कारोबार
नज़ीर अहमद राथर का मानना है कि सेब (Apple) की खेती में मेहनत और लगन सबसे ज़रूरी है। बाग़वानी एक ऐसा काम है जिसमें दिन-रात ध्यान देना पड़ता है। यही खेती कश्मीरियों की साल भर की आमदनी का ज़रिया है। सरकार की नीतियों और बाज़ार की बढ़ती मांग ने इस उद्योग को और मज़बूत किया है। आज कश्मीर में सेब उद्योग एक मज़बूत भविष्य की ओर बढ़ रहा है। बाग़वानों को चाहिए कि वो इस अवसर का पूरा फायदा उठाएं और मॉडर्न तकनीक के साथ इस परंपरा को आगे बढ़ाएं।
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