गर्मी की छुट्टियों का नाम सुनते ही बच्चों के चेहरे पर चमक आ जाती है। स्कूल की पढ़ाई से ब्रेक, खेलने-कूदने और नई चीज़ें सीखने का सही वक्त। लेकिन आजकल बच्चे छुट्टियों का ज़्यादातर टाइम घर में बैठकर मोबाइल ही यूज़ करते रहते हैं। पूरा दिन गेम खेलना, वीडियो देखना और सोशल मीडिया पर समय बिताना उनकी आदत बन चुकी है।
इसी समस्या को देखते हुए गुवाहाटी के जाने-माने फोटो जर्नलिस्ट Anupam Nath ने एक अनोखी पहल की। उन्होंने बच्चों के लिए एक ऐसा समर कैंप शुरू किया, जिसने न सिर्फ़ उन्हें मोबाइल की लत से बाहर निकाला, बल्कि उसी मोबाइल को अच्छे और ज़रूरती कामों के लिए इस्तेमाल करना भी सिखाया।
मोबाइल से सीखने का नया तरीका
Anupam Nath ने DNN24 से बात करते हुए बताया कि उनका अपना बच्चा, जो सातवीं क्लास में पढ़ता है, दिनभर मोबाइल देखता रहता था। कभी गेम, कभी रील्स और कभी चैट, मोबाइल उसका सबसे बड़ा साथी बन चुका था। तब अनुपम ने सोचा कि मोबाइल को पूरी तरह से हटाना संभव नहीं है, तो क्यों न इसे बच्चों के लिए सीखने का ज़रिया बना दिया जाए।

उन्होंने फैसला किया कि बच्चों को मोबाइल पर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी सिखाई जाए। आजकल मोबाइल कैमरे में अच्छी क्वालिटी होती है और अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो छोटे-छोटे डॉक्यूमेंट्री वीडियो या कहानियां भी बनाई जा सकती हैं। अनुपम कहते हैं, ‘मोबाइल से सिर्फ़ गेम खेलने और रील देखने की बजाय बच्चे समाज के लिए ज़रूरी संदेश भी दे सकते हैं। जैसे – पेड़ बचाओ, प्लास्टिक कम इस्तेमाल करो और बढ़ती गर्मी को रोकने की कोशिश करो।’
कैंप में क्या-क्या सिखाया गया
समर कैंप को सिर्फ मोबाइल तक सीमित नहीं रखा गया। Anupam Nath ने बच्चों के लिए कई और मज़ेदार और सीखने वाली एक्टिविटी रखीं। सुबह के समय बच्चों को योग सिखाया गया, असम की मशहूर कला माजुली मुखा बनाने की ट्रेनिंग दी गई। इसके लिए ख़ास कलाकारों को बुलाया गया जिन्होंने बच्चों को रंग-बिरंगे मुखौटे बनाना सिखाया।

बच्चों को एक्टिंग की बेसिक स्किल्स सिखाए गई। अनुपम का मानना है कि एक्टिंग सिर्फ़ नाटक या फ़िल्म के लिए नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी काम आती है। बच्चों ने सीखा कि कैमरे से सही तरीके से फोटो कैसे खींचें, वीडियो कैसे शूट करें और छोटी-छोटी कहानियों को कैसे दिखाएं।
परिवार का बड़ा साथ और बच्चों का अनुभव
Anupam Nath की पत्नी ने भी इस कैंप में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने बच्चों का ख्याल रखा, टाइम पर पानी और खाना दिया और हर एक्टिविटी में मौजूद रहीं। बच्चों के साथ वो बिल्कुल मां की तरह पेश आईं। Anupam Nath का कहना है कि उनकी पत्नी के सहयोग के बिना ये कैंप मुमकिन नहीं था।
कैंप में आए बच्चों ने इसे बेहद पसंद किया। एक बच्चे ने बताया कि उसने पहली बार मुखौटा बनाना सीखा और ये अनुभव उसके लिए बहुत ख़ास रहा। किसी ने कहा कि योग ने उसे ताज़गी दी, तो किसी को एक्टिंग क्लास ने आत्मविश्वास से भर दिया। बच्चों का कहना था कि अब छुट्टियां पहले जैसी उबाऊ नहीं रहीं, बल्कि मज़ेदार और यादगार बन गईं।

कैंप से मिली सीख
Anupam Nath का साफ मानना है कि मोबाइल बुरा नहीं है, लेकिन उसका सही और सीमित इस्तेमाल ज़रूरी है। ‘अगर मोबाइल से बच्चे नई चीज़ें सीखें, समाज को संदेश दें और खुद को बेहतर बनाएं, तो ये उनका दोस्त है। लेकिन अगर वही मोबाइल दिन-रात सिर्फ़ गेम और वीडियो दिखाए, तो वो उनकी पढ़ाई और सेहत दोनों बिगाड़ देता है।’
ये समर कैंप बच्चों और पैरेंट्स दोनों के लिए राहत लेकर आया। पैरेंट्स इस बात से खुश थे कि उनके बच्चे मोबाइल से बाहर निकलकर नई-नई चीज़ें सीख रहे हैं। हर बच्चा ख़ास होता है, बस उसे सही मौक़ा और माहौल मिलना चाहिए। अगर आपके बच्चे भी मोबाइल पर ज़्यादा टाइम बिताते हैं, तो आप भी अपने शहर में ऐसा कैंप शुरू कर सकते हैं या उन्हें किसी क्रिएटिव काम में लगाकर छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं।
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