गुवाहाटी के रूपनगर इलाके की एक गली में चलते-चलते अचानक एक बोर्ड नज़र आता है जिस पर लिखा है Nostalgia an Antique Museum। बाहर से देखने पर ये जगह किसी आम मकान जैसी लगती है। लेकिन जैसे ही दरवाज़ा खुलता है, आप मानो समय की सुरंग में प्रवेश कर जाते हैं। यहां हर दीवार, हर शेल्फ़ और हर कोना बीते युग की गवाही देता है।
अंदर कदम रखते ही सबसे पहले आपकी नज़र एक बड़े ग्रामोफ़ोन पर जाती है, जिसकी सुई मानो अब भी पुराने रेकॉर्ड बजाने को तैयार हो। पास में रखा हैं ब्लैक एंड वाइट टीवी सेट, जिनके ज़रिए कभी परिवार मोहल्ले भर को इकट्ठा करके एक साथ देखा करता था। और दीवार पर टंगी हैं घड़ियां कुछ लकड़ी की, कुछ धातु की, जिनकी टिक-टिक अब भी मानो इतिहास की बातें करती हैं। ये जगह किसी सरकारी म्यूज़ियम की नहीं, बल्कि 59 साल के देवकुमार बोरा की मेहनत और जुनून का नतीजा है।
25 साल पुराना विंटेज संग्रह
देवकुमार बोरा असम परिवहन विभाग में काम करते हैं। पेशे से सरकारी कर्मचारी लेकिन दिल से एक जुनूनी कलेक्टर। उनके शौक की शुरुआत कॉलेज के दिनों में हुई, जब उन्हें पहली बार एक पुरानी घड़ी मिली। उस घड़ी ने उन्हें मोह लिया। फिर घड़ियों से कैमरे, कैमरों से रेडियो और धीरे-धीरे किताबें, टाइपराइटर, माचिस की डिब्बियां, सिक्के और 300 साल पुराने दुर्लभ सामान तक उनका कलेक्शन फैलता गया।

पिछले 25 सालों में बोरा साहब ने अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा इसी शौक में लगाया। लोग उन्हें अक्सर टोकते—“इतना पैसा और जगह इस फालतू सामान में क्यों बर्बाद कर रहे हो?” परिवार वाले भी कभी-कभी नाराज़ हो जाते, क्योंकि घर सचमुच छोटा पड़ने लगा था। लेकिन बोरा साहब कहते हैं, “मुझे हमेशा लगता था कि अगर आज इन्हें नहीं बचाया गया, तो आने वाली पीढ़ियां इन्हें किताबों या तस्वीरों में ही देख पाएंगी। असली अहसास खो जाएगा।”
संघर्ष और शुरुआत
जब घर में सामान रखने की जगह नहीं बची, तो बोरा साहब ने एक बड़ा फ़ैसला लिया। उन्होंने बैंक से कर्ज़ लिया और 2021 में इस संग्रहालय की नींव रखी। उन्होंने इसे कोई बिज़नेस नहीं बनाया। बल्कि एंट्री पूरी तरह मुफ़्त रखी और बस विज़िटर को पहले से अपॉइंटमेंट लेना होता है। उनकी नज़र में ये संग्रहालय केवल शो-पीस का ढेर नहीं, बल्कि नई पीढ़ी के लिए शिक्षा का मंदिर है।
म्यूज़ियम की दुनिया
आज देवकुमार बोरा के टाइम म्यूज़ियम में कदम रखते ही ऐसा लगता है मानो इतिहास आपके सामने ज़िंदा हो गया हो। यहां 300 साल पुराने दुर्लभ सिक्कों और घड़ियों से लेकर ग्रामोफ़ोन, रेडियो और ब्लैक एंड वाइट टीवी तक सबकुछ सजा हुआ है। लकड़ी और धातु की पुरानी घड़ियां अब भी बीते ज़माने की टिक-टिक सुनाती हैं, तो कोने में रखा ग्रामोफोन आपको पुराने संगीत की याद में खोने को मजबूर कर देता है। यहां तक कि रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी की दुर्लभ तस्वीरें भी मौजूद है।
सबसे अनोखे कलेक्शन में शामिल हैं 18वीं और 19वीं सदी की घड़ियां और टेबल क्लॉक, जो उस दौर की नफ़ासत और हुनर को बयां करती हैं।
दीवार पर टंगे टाइपराइटर और शेल्फ़ में रखे कैमरे उन दिनों की झलक दिखाते हैं, जब तस्वीर लेना एक बड़ा जश्न हुआ करता था। यही नहीं, माचिस की डिब्बियों और डाक टिकटों का दुर्लभ कलेक्शन भी यहां आने वालों को हैरान कर देता है। इस म्यूज़ियम का हर सामान अपने साथ एक कहानी लिए हुए है-कुछ बोरा साहब ने पुराने हाट-बाज़ारों से ख़रीदे, तो कुछ लोग उनके जुनून से प्रभावित होकर ख़ुद उपहार में दे गए। यही वजह है कि ये जगह महज़ वस्तुओं का संग्रह नहीं, बल्कि अतीत की एक जीवंत यात्रा है।
समाज के लिए योगदान
आज देवकुमार बोरा का Nostalgia Museum’ गुवाहाटी ही नहीं, पूरे असम के लिए गर्व का विषय है। यहां स्कूल और कॉलेजों के छात्र रिसर्च के लिए आते हैं। पर्यटक आते हैं और अपने परिवार के साथ बीते जमाने की झलक पाते हैं। बोरा साहब को इस बात की सबसे ज़्यादा खुशी है कि उनका यह संग्रहालय नयी पीढ़ी को इतिहास से जोड़ रहा है।
देवकुमार बोरा कहते हैं, “नई पीढ़ी मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में जी रही है। लेकिन ये समझना ज़रूरी है कि हमारे पास जो आज है, वो अतीत की नींव पर खड़ा है। अगर हम अपनी जड़ों को भूल जाएंगे, तो भविष्य की दिशा भी खो देंगे।”
उनके लिए ये म्यूज़ियम केवल शौक नहीं, बल्कि एक संस्कृति की ज़िम्मेदारी है। देवकुमार बोरा की ये कहानी बताती है कि जुनून अगर दिल में सच्चाई से बस जाए, तो कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता। जिस चीज़ को लोग ‘कबाड़’ समझते थे, वही आज एक अनोखा टाइम म्यूज़ियम बनकर इतिहास का ज़िंदा सबूत है। ये म्यूज़ियम हमें ये याद दिलाता है कि वक्त कभी ठहरता नहीं, लेकिन अगर कोई चाहे तो उसके निशान ज़रूर संजो सकता है।
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