ये दास्तां हाजी मसरूर अहमद के बीड़ी बनाने वाले से लेकर शिक्षक बनने तक की है। मसरूर साहब कहते हैं कि उन्होंने अपना मिशन बनाया है कि हर बच्चे को शिक्षा मिले। अगर घर के हालात ठीक ना हो तो गरीबी हमसे वो सभी काम करवा लेती है जिसके बारें में हम कभी सोच भी नहीं सकते। मसरूर अहमद का बीड़ी बनाने वाले से लेकर शिक्षक बनने का सफर बहुत ही मुश्किलों से भरा था।
उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रहने वाले हाजी मसरूर अहमद ने अपनी तालीम बीड़ी बनाकर हासिल की। घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे, लेकिन उन्हें पढ़ाई का काफी शौक था। कन्नौज के मझपुरवा गांव के मदरसे से उन्होंने आठवीं क्लास तक पढ़ाई की और कमालगंज के आरपी डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएट हुए।
डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन पब्लिक कॉलेज की शुरुआत कर दिलवाया इंटर कॉलेज का दर्जा
कुछ वक्त के बाद बीड़ी का काम छोड़कर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और उसके साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। इसके साथ ही चित्रकूट के महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से बीएड किया और पढ़ाई पूरी करने के बाद जब गांव वापस आए तो कोई रोज़गार नहीं मिला। तब उन्हें महसूस हुआ कि लोग मुझे देखकर कहीं अपने बच्चों को पढ़ाना बंद न कर दें।
इस दौरान उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और मेहनत जारी रखी। साल 1977 में उन्होंने डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन पब्लिक कॉलेज की शुरुआत की और इंटर कॉलेज का दर्जा दिलवाया। आज इस स्कूल में तकरीबन 3200 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं।
आज ये कॉलेज महिला सुरक्षा के क्षेत्र में भी सराहनीय काम कर रहा है। अपने अनुशासन, नैतिकता, सामाजिक व साम्प्रदायिक सद्भाव, जनकल्याण के कार्यों और हिंदू मुस्लिम एकता के लिए जाना जाता है।
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