28-Aug-2025
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150 आर्ट फॉर्म्स की महारथी Pallavi Rani: India Book of Records से लेकर शारदा सिन्हा तक का सफ़र

साल 2022 में Pallavi Rani को बिहार सरकार की ओर से देश की जानी-मानी हस्तियों शारदा सिन्हा जी, उदित नारायण जी और मिलिंद सोमन के लिए पेंटिंग बनाने का मौक़ा मिला।

बचपन के रंग-बिरंगे सपनों और ब्रश से शुरू हुआ ये सफर आज दुनिया के सामने एक मिसाल बन चुका है। Pallavi Rani, एक छोटे से कस्बे की शर्मीली लड़की, जिसने अपने ख़्वाबों को साकार करने के लिए आर्ट को अपना हथियार बनाया। 150 से भी ज़्यादा कला रूपों में महारत हासिल करने और India Book of Records में अपना नाम दर्ज कराने के बाद, आज वो न सिर्फ खुद की एक पहचान बना रही हैं, बल्कि सैकड़ों लोकल आर्टिजन्स को रोज़गार और नई दिशा भी दे रही हैं।

बचपन से ही कला से गहरा नाता

Pallavi Rani का कला से रिश्ता महज तीन साल की उम्र से ही जुड़ गया था। जब बाकी बच्चे खेलकूद में बिज़ी होते थे, पल्लवी रंगों और ब्रश से अपनी एक अलग दुनिया बसाया करती थीं। उनके अनुसार, “कला मेरे लिए केवल वक्त बिताने का जरिया नहीं थी, बल्कि यह मेरे इमोशन्स को व्यक्त करने का तरीका थी।”

बिहार के एक छोटे से कस्बे में जन्मीं और डॉक्टरों के परिवार से ताल्लुक रखने वाली पल्लवी ने बचपन में ही ये साफ कर दिया था कि उनका सपना कला और फैशन की दुनिया में जाने का है। महज छह साल की उम्र में ही उन्होंने ये फैसला कर लिया था। शुरुआत में परिवार ने इसे बचपना समझकर नजरअंदाज कर दिया, लेकिन जब सात-आठ साल की उम्र तक आते-आते उनका जुनून साफ दिखने लगा, तो परिवार ने भी उनका पूरा साथ देना शुरू कर दिया। यह समर्थन आगे चलकर उनकी सबसे बड़ी ताकत बना।

पहला कदम और सीख

फ़ैशन की दुनिया उनके लिए बिल्कुल नई थी, लेकिन Pallavi Rani की पहली इंटर्नशिप ने उनका रास्ता खोल दिया। वहां उन्होंने सिर्फ़ अपने हिस्से का काम नहीं किया, बल्कि दूसरों का भी काम समझा और सीखा। उनका इरादा साफ था, ‘अगर मुझे इस फील्ड में रहना है, तो हर मौक़े का इस्तेमाल करना होगा।’ इसी सोच ने उन्हें धीरे-धीरे फ़ैशन और आर्ट की गहराई तक पहुंचाया।

पल्लवी खुद को भाग्यशाली मानती हैं कि उनके शुरुआती सफ़र में उन्हें महिला मेंटर्स और वर्कर्स के साथ काम करने का अवसर मिला। वहीं से उन्हें प्रेरणा भी मिली। यही सोच उनकी कंपनी में भी झलकती है, जहां महिलाओं को सशक्त करने के लिए उन्होंने ख़ास स्पेस रखा। ‘मैंने देखा कि महिलाओं के पास हुनर है, लेकिन उन्हें प्लेटफ़ॉर्म नहीं मिलता। मैं चाहती थी कि मेरी कंपनी ऐसी जगह बने जहां महिलाओं को मौक़ा और सम्मान दोनों मिले।’

‘Pallavish Art & Fashion’ ब्रांड की शुरुआत

2017 में कॉलेज के बाद पल्लवी ने ‘Pallavish Art & Fashion’ नाम से अपना ब्रांड शुरू किया। शुरुआत में उनका काम 80% कपड़ों और 20% आर्ट पर फोकस था। लेकिन 2022 में, जब वो मैटरनिटी ब्रेक पर थीं, उनकी सोच बदल गई। उस वक्त मेडिकल कंडीशन की वजह से उन्हें फुल बेड रेस्ट पर रहना पड़ा। पर उन्होंने इस मुश्किल दौर को अवसर में बदल दिया।

आर्ट में और गहराई से उतरकर उन्होंने अपने बिज़नेस का नया प्लान तैयार किया। यही वो मोड़ था, जब उनके काम का अनुपात बदल गया। अब 80% आर्ट और 20% फैब्रिक पर फोक होने लगा। उन्होंने लोकल आर्टिस्ट्स को जोड़ना शुरू किया, ताकि उनकी कला भी सही बाज़ार तक पहुंच सके।

छोटे कस्बे से बड़ा सपना

दिल्ली में करियर की शुरुआत करने के बाद भी Pallavi Rani ने अपनी कंपनी का हेड क्वार्टर अपने छोटे से कस्बे मेरगढ़ (बिहार) में रखा। बहुत लोगों ने कहा कि, ‘यहां आर्ट और फ़ैशन का कोई फ्यूचर नहीं है।” लेकिन पल्लवी का मानना था कि असली कला तो इन्हीं छोटे-छोटे घरों में क़ैद है। बस ज़रूरत है सही अवसर और सही प्लेटफ़ॉर्म देने की। वह समय-समय पर मेरगढ़ जाती हैं, मुफ़्त वर्कशॉप्स कराती हैं और लोगों को मोटिवेट करती हैं।

मां-बेटी की आर्टिस्टिक जर्नी

पल्लवी कहती हैं, ‘आर्ट मेरे लिए सिर्फ़ एक शौक़ नहीं है, यह मेरी ज़िंदगी जीने का तरीका है।’ उन्होंने खुद ही नहीं, बल्कि अपनी बेटी को भी आर्ट से जोड़ दिया। आज उनकी बेटी सिर्फ़ 17 महीने की है और India Book of Records में अपना नाम दर्ज करा चुकी है। अब तक उसकी चार एग्ज़िबिशन हो चुकी हैं। पल्लवी कहती हैं, “बच्चे वही सीखते हैं, जो वे देखते हैं। मैंने अपनी बेटी को शुरुआत से ही आर्ट के माहौल में रखा, और आज वह मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है।”

150 से ज़्यादा आर्ट फॉर्म्स में महारत

पल्लवी को 150 से ज़्यादा आर्ट फॉर्म्स में महारत हासिल हैं। शुरुआत में उनका झुकाव एब्स्ट्रैक्ट और इमेजिनरी आर्ट की ओर था। लेकिन 2017 के बाद उन्होंने भारतीय पारंपरिक आर्ट को अपनाया। मधुबनी, कलमकारी, पट्टचित्र, लिपन आर्ट, मिरर वर्क हर कला में उन्होंने गहरी पकड़ बनाई।

2020 के लॉकडाउन के दौरान जब पूरी दुनिया ठहर गई थी, Pallavi Rani ने उस समय को नए-नए आर्ट फॉर्म्स सीखने में लगाया। इसी मेहनत का नतीजा था कि उन्होंने 63 ट्रेडिशनल आर्ट फॉर्म्स बनाकर India Book of Records में जगह बनाई। इसके अलावा उन्हें भारत गौरव रत्न श्री सम्मान पुरस्कार, Exceptional Women in Creative Arts जैसे कई नेशनल और इंटरनेशनल सम्मान मिले।

सीखने की भूख और यात्राओं से मिली पहचान

पल्लवी जब अलग-अलग आर्ट फॉर्म्स में काम करने लगीं तो लोगों ने उन्हें सलाह दी कि किसी एक पर फोकस करो, वरना आगे नहीं बढ़ पाओगी। लेकिन उन्होंने अपनी उत्सुकता को ही ताक़त बनाया और ठान लिया कि हर महीने एक नया आर्ट फॉर्म सीखेंगी। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और आगरा जैसी जगहों की यात्राओं ने भी उनकी कला को गहराई दी। वहां की स्थानीय कलाओं और संस्कृति को करीब से देखने-सीखने का असर उनके काम पर साफ दिखता है।

2022 का सुनहरा मौक़ा

साल 2022 Pallavi Rani के करियर का खास पड़ाव रहा। उन्हें बिहार सरकार की ओर से देश की जानी-मानी हस्तियों शारदा सिन्हा जी, उदित नारायण जी और मिलिंद सोमन के लिए पेंटिंग बनाने का मौक़ा मिला। सबसे बड़ी चुनौती थी कि ये पेंटिंग्स सिर्फ़ गिफ्ट न होकर, पर्सनल टच लिए हों। मिलिंद सोमन की पेंटिंग उनकी वेडिंग फोटोज़ से प्रेरित थी। शारदा सिन्हा जी के लिए बनाई गई पेंटिंग थावे महोत्सव और मंदिर पर आधारित थी। पल्लवी कहती हैं, “मेरे लिए यह ज़रूरी था कि आर्ट गेस्ट की यादों और इमोशंस से जुड़ी हो। तभी वह सच में ख़ास बनती है।”

फ़ैशन और आर्ट का संगम

पल्लवी मानती हैं कि फ़ैशन और आर्ट का मेल भारत की सांस्कृतिक पहचान को और मज़बूत बना सकता है। लेकिन ये आसान नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती है सही लोकल आर्टिस्ट तक पहुंचना। अक्सर असली कलाकारों के पास न तो मार्केटिंग की जानकारी होती है, न प्लेटफ़ॉर्म। आज मधुबनी साड़ियों का ट्रेंड इतना बढ़ गया है कि कई लोकल आर्टिस्ट्स के पास एक साल तक के इंटरनेशनल ऑर्डर बुक हो चुके हैं।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स का असर

Pallavi Rani मानती हैं कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स ने आर्ट को एक नई पहचान दी है, लेकिन चुनौतियां भी दी हैं। “आज अगर आप ‘मधुबनी’ सर्च करते हैं, तो उसके साथ पट्टचित्र या कलमकारी भी दिखने लगता है। इससे लोगों में कन्फ्यूज़न होता है।” लेकिन वह यह भी मानती हैं कि सोशल मीडिया सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह आर्ट को सही ऑडियंस तक पहुंचाने का बेहतरीन ज़रिया है। पल्लवी का विज़न साफ़ है, वह सिर्फ़ मधुबनी या एक आर्ट फॉर्म तक सीमित नहीं रहना चाहतीं। उनका सपना है कि भारत के हर राज्य की पारंपरिक कला को एक प्लेटफ़ॉर्म मिले।

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