कैलीग्राफी से आर्टिस्ट मोहम्मद ज़ुबैर का वास्ता 2 दशक पुराना है। ज़ुबैर को दोनों आंखों से कम दिखाई पड़ता है लेकिन वो आज भी अपनी कला से जुड़े हैं। मोहम्मद ज़ुबैर ने आवाज द वॉयस को बताया कि वो लगभग 20 सालों से कैलीग्राफी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पहली प्रदर्शनी 2003 में राजघाट पर लगाई थी। जिसे लोगों ने काफी सराहा था।
मोहम्मद ज़ुबैर ने इस आर्ट को अपने बड़े भाई से सीखा और उसके बाद पांच साल उर्दू अकादमी से कैलीग्रीफी सीखी। ज़ुबैर ने उर्दू एकेडमी में बतौर इंस्ट्रक्टर भी काम किया है।
आज मुस्तफाबाद में एक एनजीओ सोफ़िया एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी के तहत वो बच्चों को मुफ़्त में हिंदी, अंग्रेजी, अरबी, उर्दू, पंजाबी लैंगवेज में कैलीग्राफी सीखाते हैं। उनका मानना हैं कि दुनिया में कोई धर्म किसी दूसरे धर्म से बैर करने की बात नहीं करता है।
वो कहते हैं कि आज के वक्त में कैलीग्राफी एक अच्छा करियर ऑप्शन है। ये किसी एक मजहब से संबंधित नहीं हैं। जब अलग-अलग धर्मों के लोग अपने नाम, ग्रंथ और विचार को कैलीग्राफी करवाते हैं तो उन्हें काफी अच्छा लगता है। वो नहीं चाहते हैं कि ये आर्ट कभी ख़त्म हो। आज कैलीग्राफी एक मॉडर्न आर्ट बनती जा रही है जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं।
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