गायक, गीतकार, कवि, कलाकार डॉ. भूपेन हजारिका का मानना था कि असल में मानवता की संस्कृति एकता की संस्कृति है। यह सोच उनके गीतों में भी झलकती है, जो आज भी इतिहास की गलियों में गूंजते हैं। डॉ. भूपेन हजारिका असमिया पहचान को बरकरार रखने के लिए समर्पित थे। उनका लक्ष्य असम की पुरानी सांस्कृतिक धरोहर और आज की चेतना के बीच एक मज़बूत रिश्ता बनाना था, जिससे असमिया लोगों में आत्मविश्वास बढ़े। उन्होंने असमिया लोगों को अपनी भाषा और संस्कृति को अपनाने और आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी।
अपने इस मिशन में, डॉ. भूपेन हजारिका ने न सिर्फ असमिया कला और परंपराओं को संजोया, बल्कि उन्हें नए तरीके से प्रस्तुत भी किया, ताकि वे आधुनिक लोगों से भी जुड़ सकें। उन्होंने असमिया पहचान को दुनिया के सामने लाने का सपना देखा और कहा कि अगर असमिया संस्कृति को मज़बूत नहीं किया गया, तो यह गुमनामी में खो जाएगी।
डॉ. हजारिका को विश्वास था कि मेहनत ही असमिया संस्कृति और पहचान को पुनर्जीवित कर सकती है। उन्होंने लोगों से मेहनत करने और पूरी निष्ठा से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि बिना कड़ी मेहनत के असमिया संस्कृति को पुनर्जीवित करना नामुमकिन है।
उनके गीतों में असम के महान योद्धा लचित बोरफुकन के साहस की झलक मिलती है। वे अक्सर रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का हवाला देते हुए सभी में भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते थे। अपने प्रसिद्ध गीत “महात्मा हसी बोले” में डॉ. हजारिका ने मानवता की गहराई को समझते हुए एकता की भावना को उभारा।
डॉ. हजारिका का संगीत मानवता, भाईचारे और एकता के संदेश को फैलाता है। उनकी धुनें एक ऐसे भविष्य का सपना दिखाती हैं, जहां लोग मिलजुलकर आगे बढ़ें। उनके हर गीत में एक आह्वान छिपा है – लोग अपनी संस्कृति को संजोएं और अपनाएँ।
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