13-Nov-2025
HomeBIHARदिवाली के अंधेरे में चमकती उम्मीदें: जब पटना की नेत्रहीन छात्राएं रोशन...

दिवाली के अंधेरे में चमकती उम्मीदें: जब पटना की नेत्रहीन छात्राएं रोशन कर रही देश-विदेश के घर

दृष्टिहीन बच्चियां अपनी मेहनत से रंग-बिरंगी और सुगंधित मोमबत्तियां तैयार कर रही हैं  ऐसी मोमबत्तियां जो न सिर्फ़ बिहार या भारत में, बल्कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के घरों को रोशन कर रही हैं।

दिवाली… रोशनी और खुशियों का त्योहार। हर कोई अपने घर को दीयों और मोमबत्तियों से सजाने में मसरूफ़ है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वो मोमबत्तियां जो आपके घर में उजाला कर रही हैं, उन्हें बनाने वाले हाथ शायद खुद रोशनी नहीं देख सकते?

पटना के कुम्हरार इलाके में मौजूद अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय की नेत्रहीन छात्राएं इस बार की दिवाली को अपने हुनर और हौसले से और भी ख़ास बना रही हैं। ये दृष्टिहीन बच्चियां अपनी मेहनत से रंग-बिरंगी और सुगंधित मोमबत्तियां तैयार कर रही हैं  ऐसी मोमबत्तियां जो न सिर्फ़ बिहार या भारत में, बल्कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के घरों को रोशन कर रही हैं।

हौसले की रोशनी से जगमगाती आंखें

स्कूल की वार्डन रेणु कुमारी बताती हैं, “इन छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमने करीब छह साल पहले मोमबत्ती निर्माण कार्यक्रम शुरू किया था। अब ये बच्चियां इतनी निपुण हो गई हैं कि हर साल दिवाली के पहले सैकड़ों की संख्या में खुशबूदार मोमबत्तियां तैयार करती हैं, जिनकी डिमांड देश-विदेश से आती है।”

स्कूल में दो प्रशिक्षित शिक्षिकाओं की देखरेख में ये बच्चियां काम करती हैं। भले ही बच्चियां देख नहीं सकती, लेकिन उनके हाथों की पहचान कमाल की है। वे महसूस कर लेती हैं कि कौन-सा रंग कौन-सा है, कौन-सी खुशबू किस मोल्ड (खांचे) में डालनी है, और कौन-सी मोमबत्ती किस आकार में बनेगी।

नेत्रहीन छात्राओं ने बनाई मोमबत्तियां

मोम को पिघलाकर उम्मीद गढ़ती हैं ये बच्चियां

मोमबत्ती बनाने का प्रोसेस देखकर किसी की भी आंखें नम हो सकती हैं। पहले बच्चियां ध्यान से मोम को गरम करती हैं, फिर सावधानी से उस पिघले हुए मोम को रंगीन पाउडर और खुशबूदार एसेंस के साथ मिलाती हैं। इसके बाद वे उस गर्म मोम को अलग-अलग आकार और डिज़ाइन के खांचों (मोल्ड) में डालती हैं  गोल, चौकोर, दिल के आकार के या फूलों जैसे सुंदर रूपों में।

मोम जमने के बाद वे मोमबत्तियों को सावधानी से निकालती हैं, उन्हें साफ करती हैं और फिर बड़ी निपुणता से पैकिंग करती हैं। यही पैकिंग बाद में अमेरिका, कनाडा और भारत के कई शहरों में भेजी जाती है। इन मोमबत्तियों की ख़ासियत ये है कि ये सस्ती होने के साथ-साथ पूरी तरह नैचुरल और खुशबूदार होती हैं। किसी में गुलाब की महक होती है, किसी में चंदन की, तो किसी में नींबू और लैवेंडर की। जब इन्हें जलाया जाता है, तो घर के साथ-साथ दिल भी महक उठता है।

कई बार हम लोग छोटी-छोटी मुश्किलों से हार मान लेते हैं। लेकिन अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय की ये दृष्टिहीन बच्चियां दिखाती हैं कि अगर इरादा पक्का हो, तो अंधेरा भी उजाला बन सकता है। वार्डन रेणु कुमारी कहती हैं, “इन बच्चियों का आत्मविश्वास ही हमारी असली दिवाली है। जब ये अपनी बनाई चीज़ों को प्यार से सजाती हैं और खुद मुस्कुराती हैं, तो लगता है कि ये केवल मोमबत्तियां नहीं बना रहीं, बल्कि अपने भविष्य को गढ़ रही हैं।”

दिवाली की सच्ची रौशनी

जब हम अपने घरों को रोशन करते हैं, तो शायद हमें एहसास नहीं होता कि कहीं न कहीं वो मोमबत्ती किसी ऐसी बच्ची ने बनाई है जो खुद रोशनी नहीं देख सकती। लेकिन उसने अपने हाथों और हौसले से आपके घर को जगमगा दिया है।

दिवाली का असली मतलब यही है अंधकार को मिटाकर आशा जगाना। और ये काम पटना की ये नेत्रहीन बच्चियां बखूबी कर रही हैं। इन बच्चियों की कहानी सिर्फ़ मोमबत्तियों की नहीं है ये कहानी है संघर्ष, आत्मनिर्भरता और हौसले की।

उन्होंने साबित कर दिया है कि विज़न आंखों से नहीं, सोच से होता है।उनकी बनाई रंग-बिरंगी और सुगंधित मोमबत्तियां सिर्फ़ दीये नहीं हैं वो उन दिलों की रोशनी हैं जिन्होंने अंधेरे को कभी हारने नहीं दिया। जो खुद रोशनी नहीं देख सकते, वही दुनिया को रोशन करने का जज़्बा सबसे ज़्यादा रखते हैं।

ये भी पढ़ें: पत्थरों की रगड़ और पानी की धार: Zulfikar Ali Shah की उस चक्की की दास्तान जो वक़्त के साथ नहीं थमी

आप हमें FacebookInstagramTwitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।












RELATED ARTICLES
ALSO READ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular