राजधानी रांची से 60 किलोमीटर दूर मैकलुस्कीगंज (McCluskieganj) गांव, जहां एक ही परिसर में मंदिर, मज़ार, चर्च और गुरूद्वारा स्थापित है। यहां का नज़ारा देखकर लोग नफरत करना भूल जायेंगे। यहां लोग दूर दूर से आते है, कुछ यहां आकर मत्था टेकते हैं तो कुछ फातिहा पढ़ते हैं।
इस कस्बे को कभी एंगलो इंडियन कम्युनिटी ने बसाया था। एंगलो इंडियन की आबादी समय के साथ-साथ घटती चली गई। यहां का समाज पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करता था इसलिए उनका रहन-सहन और बात करने का ढंग पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित था। इसलिए इस जगह को मिनी लंदन नाम से जाना जाने लगा था।
ईसाइयों के रहने के लिए 300 से ज्यादा खूबसूरत बंगलो का निमार्ण करवाया गया था। यहां का समाज पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करता था, इसलिए उनका रहन-सहन और बात करने का ढंग पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित था, जिसके बाद में मैकलुस्कीगंज (McCluskieganj) को मिनी लंदन कहा जाने लगा। इसके बसने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि जब टिमोथी मैकलुस्की पहली बार आया, तो यहां की प्रकृति और आबो-हवा को देखकर मोहित हो गया। उसी वक्त उसने एंगलो इंडियन परिवारों को बसाने की ठान ली।
टिमोथी मैकलुस्की ने तय किया कि भारत में ही अपने लोगों के लिए रहने कि व्यवस्था करेगा जिसके बाद मैकलुस्कीगंज का जन्म हुआ, जिसके बाद कई धनी एंगलो इंडियंस परिवारों ने यहां बंगले बनाना शुरू किया और देखते ही देखते यह खूबसूरत शहर में बदल गया। मैकलुस्की ने करीब 2 लाख एंगलो इंडियंस को यहां बसने का न्योता दिया था, जिसमें 300 परिवार आकर बसे थे। लेकिन धीरे-धीरे पलायन के बाद संख्या सिमट कर 20 पर आ गई।
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