उर्दू अदब की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो बहुत कम वक़्त में अपनी पहचान बना लेते हैं। चराग़ शर्मा उन्हीं में से एक हैं एक ऐसे नौजवान शायर, जिनकी शायरी में मोहब्बत की ख़ुशबू भी है और ज़माने की हक़ीक़त का आईना भी। उनके अशआर में नफ़ासत, एहसास और गहराई का ऐसा संगम है जो हर क़ारी के दिल में उतर जाता है।
चराग़ शर्मा का नाम आज की उर्दू शायरी में एक ताज़ी हवा के झोंके की तरह लिया जाता है। उनकी शख़्सियत निहायत हस्सास, नर्म-दिल और मुतवाज़िन है। उनकी बातों और शेरों में एक ऐसी सादगी है जो सीधे दिल को छू जाती है। वो न तो महज़ अल्फ़ाज़ के खेल में मशग़ूल हैं और न ही शोहरत के पीछे भागते हैं बल्कि उनके लफ़्ज़ एक मक़सद, एक एहसास और एक गहरी सोच के साथ लिखे जाते हैं।
शायरी में रिवायत और जदीदियत का संगम
चराग़ शर्मा की शायरी की ख़ास बात ये है कि उसमें रिवायती उर्दू अदब की मिठास भी है और मौजूदा दौर की सच्चाइयों का दर्द भी। वो अपने अशआर में पुराने उस्ताद शायरों की लय, लफ़्ज़ों की नफ़ासत और जज़्बात की गहराई को बनाए रखते हैं, लेकिन साथ ही आज के नौजवान की सोच और तजुर्बे को भी शामिल करते हैं।
उनकी शायरी में मोहब्बत, जुदाई, तन्हाई, उम्मीद और इंसानी जज़्बात के वो सब रंग हैं जो उर्दू शायरी की पहचान हैं। उनका अंदाज़-ए-बयां कुछ यूं है जैसे कोई मोती चुनने वाला गोता खोर समंदर की तह से ख़ूबसूरत लफ़्ज़ निकाल लाए। उनके कुछ मशहूर अशआर देखें —
उन्होंने अपने मुताबिक़ सज़ा सुना दी है,
चराग़ शर्मा
हमें सज़ा के मुताबिक़ बयान देना है।
ये शेर उनके फ़िक्र की गहराई और तजुर्बे की झलक दिखाता है एक ऐसी सोच जो न सिर्फ़ हालात को समझती है बल्कि उन पर सवाल भी उठाती है।
हक़ीक़त और दर्द का बयान
चराग़ शर्मा के अशआर में दर्द भी है, लेकिन वो मायूसी का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और उम्मीद का दर्द है। उनकी शायरी किसी शिकायत की नहीं, बल्कि ज़िंदगी को महसूस करने की दावत देती है।
ख़ताएं इस लिए करता हूं मैं कि जानता हूं,
चराग़ शर्मा
सज़ा मुझे ही मिलेगी ख़ता करूं न करूं।
ये शेर इंसान की उस जद्दोजहद को बयां करता है जहां ज़माना अक्सर बेगुनाही पर भी इल्ज़ाम लगाता है। इसी तरह एक और शेर देखें —
तुम्हें ये ग़म है कि अब चिट्ठियां नहीं आतीं,
चराग़ शर्मा
हमारी सोचो हमें हिचकियां नहीं आतीं।
यहां चराग़, मोहब्बत और जुदाई के एहसास को बहुत सादा मगर असरदार लहजे में बयां करते हैं। उनके अल्फ़ाज़ एक पुराने ज़माने की मोहब्बत और आज की ख़ामोशी, दोनों को जोड़ते हैं।
मोहब्बत और एहसास का शायर
चराग़ शर्मा का नाम मोहब्बत की शायरी से भी जुड़ा है। उनकी ग़ज़लों में रूमानियत का रंग गहरा है, लेकिन वो सतही नहीं। बल्कि दिल की गहराइयों से निकली हुई मोहब्बत है, जो हर शेर में महसूस होती है।
मैं ने क़ुबूल कर लिया चुप चाप वो गुलाब,
चराग़ शर्मा
जो शाख़ दे रही थी तिरी ओर से मुझे।
कितनी सादगी, कितनी खूबसूरती है इन लफ़्ज़ों में। बिना किसी शोर के, वो पूरे इज़हार-ए-मोहब्बत को एक शेर में समेट देते हैं।
वो हंस के देखती होती तो उस से बात करते,
चराग़ शर्मा
कोई उम्मीद भी होती तो उस से बात करते।
यहां मोहब्बत की झिझक, अदब और तवक़्क़ो — सब एक साथ दिखाई देते हैं।
अंदाज़-ए-बयां और लफ़्ज़ों की रूह
चराग़ शर्मा के पढ़ने का अंदाज़ भी उनके शेरों जितना ही असरदार है। जब वो अपनी ग़ज़लें महफ़िलों में पढ़ते हैं, तो लगता है जैसे हर लफ़्ज़ किसी दिल की धड़कन पर रखा गया हो। उनकी आवाज़ में एक नरमी, एक गहराई और एक ख़ामोश दर्द है — जो सुनने वाले के अंदर तक महसूस होता है।
उनके अशआर सिर्फ़ सुनने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए होते हैं।
उड़ते हैं गिरते हैं फिर से उड़ते हैं,
चराग़ शर्मा
उड़ने वाले उड़ते उड़ते उड़ते हैं।
इस शेर में ज़िंदगी की जद्दोजहद, गिरने और फिर उठने का हौसला झलकता है। यही असली इंसानी रूह की पहचान है- गिरना, संभलना और फिर उड़ जाना।
अदब की दुनिया में नई पहचान
चराग़ शर्मा ने कम उम्र में ही उर्दू अदब में अपनी एक मज़बूत पहचान बना ली है। उनकी ग़ज़लें और नज़्में सोशल मीडिया पर खूब पढ़ी और साझा की जाती हैं। वो सिर्फ़ एक शायर नहीं, बल्कि एक सोचने पर मजबूर करने वाले फ़लसफ़ी कवि हैं- जो ज़िंदगी के गहरे सवालों को लफ़्ज़ों में ढाल देते हैं।
उनकी शायरी में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़, जौन एलिया और राही मासूम रज़ा की रूह की झलक महसूस की जा सकती है लेकिन उनकी अपनी एक जुदा पहचान भी है। वो नकल नहीं करते, बल्कि अपनी राह बनाते हैं।
नौजवानों में बढ़ती लोकप्रियता
चराग़ शर्मा आज के नौजवानों के बीच बेहद मक़बूल हैं। उनकी शायरी मोहब्बत करने वालों को उम्मीद देती है, टूटे दिलों को सब्र सिखाती है और सोचने वालों को सवाल देती है। उनके शेरों में एक “रूहानी ताज़गी” है — जो सुनने के बाद देर तक मन में गूंजती रहती है।
कोई उस बूढ़े पीपल से कह आओ,
चराग़ शर्मा
पिंजरे में हम ख़ूब मज़े से उड़ते हैं।
इस शेर में वो समाज की तंग सोच, कैद की हकीकत और इंसान की आज़ादी की चाह — सब कुछ एक तंज़िया मगर नफ़ीस लहजे में बयान कर देते हैं। चराग़ शर्मा की शायरी हमें ये एहसास कराती है कि लफ़्ज़ सिर्फ़ बोलने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने और जोड़ने के लिए होते हैं। उनकी ग़ज़लें मोहब्बत के साथ-साथ इंसानियत, हक़ीक़त और सोच का भी आईना हैं। वो उर्दू अदब की उस नई पीढ़ी के शायर हैं जो दिल से लिखते हैं, और दिल तक पहुंचते हैं। उनकी शायरी से एक बात साफ़ झलकती है चराग़ शर्मा महज़ नाम नहीं, बल्कि एक रौशनी हैं जो उर्दू शायरी के आसमान को रोशन कर रही है।
वो हंस के देखती होती तो उस से बात करते,
चराग़ शर्मा
कोई उम्मीद भी होती तो उस से बात करते…
यही है चराग़ शर्मा का जादू — सादगी में गहराई, और गहराई में मोहब्बत।
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