अहद अहमद की कहानी: प्रयागराज के छोटे से घर में रहती मां ने अपने बेटे को जज बनाने का सपना देखा। वे अपने पति के साथ सिलाई और पंचर लगाने का काम करती थीं, लेकिन उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई को महत्व दिया। दुष्यंत कुमार की पंक्तियों ने उन्हें प्रेरित किया – “कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो”।
उनके बेटे, अहद अहमद, ने पीसीएस-जे परीक्षा में पहले प्रयास में 157वीं रैंक हासिल की। इसके बाद, वे पूरे इलाके में सबको उत्साहित कर रहे हैं, चाहे वो हिंदू, मुस्लिम या अन्य धर्म के हों। उनकी सफलता उनके परिवार के लिए गर्व की बात है, जिन्होंने मिलकर संघर्ष किया और उनके शिक्षा को महत्व दिया।
अहद की सफलता का राज था उनके माता-पिता का साथ। उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा दिलाई और उन्हें ईमानदारी और मेहनत की महत्वपूर्ण बातें सिखाई। अहद ने बिना किसी कोचिंग के अपनी पढ़ाई पर भरोसा किया और सफलता पाई।
अहद अब एक जज हैं और उनके पास अपने पिता को आराम देने का मौका है, लेकिन वे कभी-कभी उनके काम में भी मदद करते हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मेहनत, संघर्ष और माता-पिता का साथ हर किसी को सफल बना सकता है, चाहे वो जज हो या साइकिल पंचर की दुकानदार।
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