हिंदुस्तान दुनिया के विभिन्न तहजीबों का गहवारा है, जहां हिन्दुस्तानी चमन ने बहुत समय से धर्मों और संस्कृतियों के फूलों की खुशबू साझा की है। इसीलिए यहां गंगा-जमुनी तहजीब को अमल में आने का अनुभव भी हुआ है। हालांकि, हिंदुस्तानी मुसलमानों (Indian Muslims) को अपने मसाइलों के समाधान के लिए अलग से इज्तिहाद (Ijtihad) और गौर-ओ-फिक्र की आवश्यकता होती है। इस संदर्भ में, आवाज़-द वॉयस के सीनियर खबरनवीस अब्दुल हई खान ने दिल्ली की इस्लामिक फिकह अकादमी (Islamic Fiqh Academy) के मुफ्ती अहमद नादिर कासमी साहब (Ahmed Nadir Qasmi) से गुफ्तगू की।
इस बातचीत के प्रमुख विषयों को ध्यान में रखते हुए, हिंदुस्तान अपने तहजीबों का गर्व है और मुसलमानों के इज्तिहाद की महत्वपूर्ण आवश्यकता को प्रोत्साहित करता है। कुरान और हदीस के खिलाफ जो देशी कानून बनाया जाए, वह इस्लाम का आदर्श नहीं होगा। इस्लाम का आदर्श तो यह है कि कुरान में जो हुक्म है और रसूल सअव ने जो कहा है, वह मुसलमानों के लिए ग्रहणीय हैं।
अगर कोई हुकूमत ऐसा कानून बनाती है जो मुसलमानों के लिए ग्रहणीय नहीं है, तो एक सच्चा मुसलमान उसका विरोध करेगा क्योंकि वह इस्लाम का कानून नहीं है। सऊदी अरब या कोई भी देश, अगर कुरान के खिलाफ कोई हुक्म कायम करता है तो वह इस्लामी नहीं कहलाएगा और उसे मुसलमानों के लिए ग्रहणीय नहीं माना जाएगा। इस्लाम अपनी पहचान धारण करता है, जो कुरान-ए-करीम में है और रसूल की सुन्नत में है।
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