तैयबुन निशा की ज़िन्दगी में चिंताएँ कभी नहीं छोड़ती थीं। एक बार उनकी सहपाठी जुलेखा की सोने की अंगूठी खो गई थी जिससे उन्हें बड़ी चिंता हुई थी। उन्होंने देवता से अपनी ये बड़ी मांग की थी। और हाल ही में, शिवसागर में सत्तर वर्षीय दोस्त की मुलाकात से उनकी प्रार्थनाएं पूरी हुईं।
अब वह अपनी चिंताओं से छुटकारा पा चुकी हैं। ये देखकर यह स्पष्ट होता है कि इन्सान कभी उम्मीद नहीं छोड़ सकता है।
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