कड़ी मेहनत वो चाभी है, जिससे किस्मत का दरवाज़ा खुलता है.. ये कहना है मोहम्मद दिलशाद का। मोहम्मद दिलशाद लकड़ी पर नक्काशी करने वाले नायाब कारीगर हैं। नक्काशी करना उनका पुश्तैनी काम है। बचपन से ही उन्हें कारीगरी सीखने की चाह थी, लेकिन पिता चाहते थे कि वो पढ़ लिखकर आगे बढ़ें।
लकड़ी पर डिज़ाइन बनाते वक्त कई बार ऐसा हुआ है कि हथौड़े से चोट लगी लेकिन उन्होंने काम करना नहीं रोका। कुछ वक्त के बाद दोबारा से लकड़ी पर नक्काशी करने जुट जाते थे। आज उनके इस काम में परिवार के सभी लोग मिलकर करते हैं। मोहम्मद दिलशाद के पांच बेटे है, जो इसी काम से जुड़े हैं। कई बार वो अपने मन से भी डिजाइन बनाते थे,जो लोगों को बहुत पसंद आते थे।
18 साल की उम्र में उन्होंने लकड़ी के बॉक्स, टेबल, सेंट्रल टेबल व फोटो फ्रेम वगैरह पर बेहतरीन डिज़ाइन बनाकर बाजार में भेजना शुरू किया था। एक दिन वो वक्त भी आया जब उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें वुडन आर्ट में शिल्पकार अवॉर्ड से नवाज़ा गया।
हस्तशिल्प को लेकर उन्हें देश-विदेश में कई बार जाने का मौका मिला। साल 2000 में जर्मनी में आयोजित प्रदर्शनी के अलावा स्विट्जरलैंड, कानाडा, इटली,अमेरिका, मॉरिशस, वेस्टइंडीज के अलावा कई देशों में जाकर वे अपनी आर्ट को प्रदर्शित कर चुके हैं। सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेले में भी उन्हें हर तीसरे साल पहुंचने का मौका मिलता है।
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