राजस्थान के बाड़मेर जिले का छोटा सा गांव सूजा शरीफ़, जिसे “सूजों का निवाण” के नाम से जाना जाता है। आज ये गांव शिक्षा की मिसाल बन चुका है। 1870 ईसवीं यानी 1927 विक्रम संवत में यहां दर्स जाति के लोग बसे और उन्होंने मस्जिद और मदरसा बनवाया।
लेकिन इस गांव का परिवर्तन तब हुआ जब करीब 20 साल पहले यहां के निवासी पीर सैयद गुलाम हुसैन शाह जिलानी ने एक संस्थान का सपना देखा, जिसमें सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही नहीं, बल्कि दुनियावी तालीम भी दी जाती थी। उन्होंने अपने मिशन को छोटे मदरसे तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक विश्वस्तरीय संस्थान बनाने का फैसला लिया।
पीर सैयद गुलाम हुसैन शाह जिलानी ने अपने मिशन के लिए एक टीम बनाई और सबसे पहले एक हॉस्टल और सभी सुविधाओं से लैस स्कूल बनवाया। आज 20 सालों की मशक्कत के बाद, उनका यह सपना “दारुल उलूम फैजे सिद्दीकिया” के रूप में साकार हुआ है। उन्होंने अपनी इच्छाओं को त्यागकर, मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए शिक्षा की मशाल जलाई है।
आज ये संस्थान किसी विदेशी यूनिवर्सिटी जैसा दिखता है। इस संस्थान के विकास में भारत सरकार के अल्पसंख्यक विभाग के मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन, बाड़मेर के सांसद और स्थानीय विधायक आर्थिक सहयोग कर रहे हैं। 2013 में, यहां एक ‘सिद्दीकिया जामिया मस्जिद’ भी बनवाई गई है। आज यहां क्लास 1 से 12 तक की पढ़ाई होती है, जहां करीब 350 स्टूडेंट पढ़ रहे हैं। यहां कुरान की शिक्षा से लेकर मौलवी बनने तक की पढ़ाई कराई जाती है। पीर सैयद गुलाम हुसैन शाह जिलानी की यह कोशिश न सिर्फ बाड़मेर जिले, बल्कि पूरे राजस्थान और देश में मुस्लिम समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। रेगिस्तान की इस ज़मीन में शिक्षा की मशाल जलाकर उन्होंने समाज के लिए एक नई दिशा दिखाई है।
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