बिहार के नालंदा जिले का गिलानी गांव साम्प्रदायिक सौहार्द और अपनी अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां के लोग, चाहे किसी भी धर्म या जाति के हों, गर्व से अपने नाम के साथ ‘गिलानी’ या ‘जिलानी’ लगाते हैं। गिलानी नाम इस गांव में बसने वाले संतों के नाम पर पड़ा। हज़रत अब्दुल क़ादिर गिलानी का प्रचार न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में, बल्कि दुनिया भर में फैला था। उनकी शिक्षा प्रेम, करुणा और विनम्रता पर आधारित थी, और इसके कारण उन्हें समाज के अलग-अलग वर्गों से शिष्य मिले। उनके कुछ शुरूआती शिष्य भारत में आकर बस गए। उनके प्रति श्रद्धा के कारण गांव के सभी समुदायों ने इस नाम को अपनाया है, और इसे अपनी पहचान का हिस्सा बनाया है।
गिलानी नाम को सिर्फ मुसलमानों ने नहीं, बल्कि कई हिंदू परिवारों ने भी अपनाया है। यह नाम इस गांव के सभी निवासियों को एक साझा पहचान देता है, जो धार्मिक और सामाजिक असमानताओं से परे है। यहां करीब 5,000 लोग रहते हैं, जिनमें मुसलमान, पासवान, कोइरी, यादव, नाई, रविदास, कहार, कुम्हार, और पंडित जैसी अलग-अलग जातियों और समुदायों के लोग शामिल हैं।
गांव के मदरसे इस्लामिया गिलानी के टीचर शाहनवाज़ अनवर के मुताबिक, “यहां हिंदू और मुस्लिम मिलकर प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं और सभी त्योहार एक साथ मनाते हैं। मेरे बचपन से ही यहां लोग अपने नाम में ‘गिलानी’ जोड़ते हैं, जो हमारे लिए गर्व और परंपरा का प्रतीक है।” गिलानी गांव साम्प्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल है कि कैसे आपसी सम्मान और साझा संस्कृति लोगों को एकजुट रख सकती है। ‘गिलानी’ न सिर्फ एक नाम है, बल्कि एक प्रेरणा है जो एकता और परंपरा को बरकरार रखते हुए गांव के लोगों को गर्व महसूस कराती है।
इस ख़बर को आगे पढ़ने के लिए hindi.awazthevoice.in पर जाएं
ये भी पढ़ें: कश्मीरी विलो विकर शिल्प: दुनिया को लुभा रहा कश्मीर का हुनर
आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं