उर्दू रामायण (Urdu Ramayana): बीकानेर में जिला शिक्षा एंव प्रशिक्षिण संस्थान से जुड़े डॉ. जियाउल हसन कादरी के अनुसार आजादी से पहले की घटना है। राणा खानवी उत्तर प्रदेश के संडीला से आकर बीकानेर में बस गये। वह उर्दू और फारसी के शिक्षक और कवि भी थे। उनके एक छात्र कश्मीरी पंडित थे। उन्होंने उन्हें बताया कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में तुलसीदास जयंती के अवसर पर एक रामायण प्रतियोगिता आयोजित की गई है। लेकिन मौलवी खान राणा ने कहा कि चूंकि उन्होंने रामायण नहीं पढ़ी है, इसलिए यह संभव नहीं है मैं उसमें भाग ले सकूं। जिस पर कश्मीरी पंडित शिष्य ने मौलवी खान राणा से कहा कि अगर आप चाहें, तो मैं आपको हर दिन इसे पढ़ा सकता हूं।
जिस पर मौलवी ने सहमति जताई। उनके छात्र प्रतिदिन उन्हें रामायण सुनाते थे और सुनते-सुनते उन्होंने रामायण लिख दी। परिणाम यह हुआ कि समाप्त होने के कुछ दिन बाद मौलवी ने उर्दू रामायण को पद्य में प्रस्तुत किया। इसके बाद छात्र ने उसे डाक से बनारस भेजा। कुछ दिनों बाद खबर आई कि मौलवी खान राणा द्वारा रचित उर्दू रामायण ने स्वर्ण पदक जीता है। खास बात यह है कि यह स्वर्ण पदक उन्हें बीकानेर में प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित बुद्धिजीवी सर तेज बहादुर सप्रू ने प्रदान किया था।
2006 में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने उर्दू रामायण को 12वीं पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की घोषणा की। उसके बाद 2012 में उर्दू रामायण का पाठ शुरू हुआ। अब हर साल दिवाली के मौके पर शहर में यह त्योहार मनाया जाता है और शहर के हिंदू और मुस्लिम एक साथ बैठकर इसे सुनते हैं। इसे सांप्रदायिक सौहार्द का गवाह माना जाता है।
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