20 साल से कश्मीर के इतिहास को संजोए हुए है ‘मीरास महल म्यूजियम’ (Meeras Mahal Museum)। नॉर्थ कश्मीर के सोपोर शहर में Educationist और Social Activist अतीक बानो ने 2001 में एक प्राइवेट म्यूजियम मीरास महल की स्थापना की, जिसमें उन्होंने शहर के हर कोने से कश्मीर के इतिहास (History of Jammu and Kashmir) को दर्शाती 7000 से ज्यादा वस्तुएं इकट्ठी की। मीरास महल में रखी चीजों से अतीक बानो का खास लगाव था और इसके पीछे उनका एक खास मकसद भी था।
आज, संग्रहालय में हेडगियर, कराकुली (पारंपरिक कश्मीरी टोपी), पालकी, लकड़ी के जूते, भूसे के जूते, लकड़ी की प्लेट, मूसल और मोटार, चरखा, नक्काशीदार तांबे का बर्तन, मिट्टी के बर्तन जलाना, कुरान स्टैंड, फूल फूलदान, मिट्टी का घड़ा, मनी बैग, और कई अन्य वस्तुएं जो देखने वाले को काफी मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

आज इतिहास के खजाने का पुराना दरवाजा हर आमोख़ास के लिए फिर से खोल दिया गया है। इस दरवाजे के खुलते ही सालों पुराने किसी के सपने को फिर से जान मिल गई है लेकिन विडंबना ये है कि अपने सपने को जीने के लिए वो आज इस जमीं पर नहीं है।
मीरास महल नई पीढ़ी को इतिहास की झलक और पुरानी पीढ़ी को बीते वक्त की याद दिलाता है
वर्तमान में इस म्यूजियम के इन्चार्ज मूजम्मिल बशीर ने DNN24 को बताया कि “अतीक बानो का सपना था कि ये मिरास महल कश्मीर की आवाम के लिए बन जाए। इसे बनाने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की। उन्होंने कशमीर के कल्चर, पहनावा, रहन सहन हर चीज की कलेक्शन किया। हमने 25 लोगों के साथ यहां की सोफ्ट ओपनिंग की , लोग यहां आने के बाद बहुत खुश हुए। पहले ये एक स्टोर की शेप में था। बाद में हमने इसे हमने ठीक कराया।”

कैंसर की बीमारी की वजह से 2017 में अतीक बानो ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें म्यूजियम के पास एक कब्रिस्तान में दफनाया गया। “ये म्यूजियम 2012 से कश्मीर के सोपार शहर में स्थित है। 1998 में सरकारी स्कूल से रिटार्यड होने के बाद अतीक बानो ने कश्मीर के दूरदराज के कस्बों और गांवों की यात्रा की और कलाकृतियों, पांडुलिपियों और रोजमर्रा में उपयोग में आने वाली चीजों को इकट्ठी की। ये म्यूजियम कश्मीर घाटी की सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को प्रदर्शित करता है। हमारे पिंड बिरादरी के लोगों का सामान है, यहां मुस्लिमों और सरदारों के आइटम भी मौजूद है अगर हमे लद्दाख से भी कुछ चीजे मिलती है तो हम उसे कलेक्ट कर लेते है”
मुजम्मिल बशीर कहते है कि “मां बाप का फर्ज बनता है कि वो अपने बच्चों को अपने बीते कल के बारे में बताए और दिखाए हमारा पास्ट क्या था? उनको भी पता चले हमारे बुजुर्ग कैसे रहा करते थे?सरकार से उम्मीद है कि आने वाले वक्त में हमारी मदद करेंगे, क्योकि ये हमारा कल्चर है हमारे कश्मीर की शान है हमारा फर्ज बनता है कि यहां मदद करे और कर भी रहे है।”
अतीक बानो कौन थी
1940 के दशक में जन्मी अतीक ने श्रीनगर के महिला कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की, उसके बाद उर्दू और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और बाद में राजस्थान से एम.एड भी पूरा किया। उन्होंने 1958 में राज्य के शिक्षा विभाग में शामिल होने के बाद एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया था। अपने करियर में उन्होंने शिक्षा के संयुक्त निदेशक का कार्यभार संभाला और 1998 में निदेशक पुस्तकालय और अनुसंधान जम्मू और कश्मीर के रूप में सेवानिवृत्त हुईं। 1970 के दशक में उन्होंने मजलिस-ए-निसा नाम की संस्था की भी स्थापना की, जो दलित महिलाओं के कल्याण के लिए काम करती थी। उन्हें सांस्कृतिक और साहित्यिक संगठन अदबी मरकज़ कामराज़ जम्मू और कश्मीर का उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था जो कश्मीरी संस्कृति, कला और साहित्य को बढ़ावा देने की दिशा में काम करता है।
आज संग्रहालय की सभी वस्तुएँ हमें कश्मीर के बीते युग की सभ्य और सरल जीवनशैली की याद दिलाती हैं। कोई कल्पना कर सकता है कि वह समय कितना सरल था, लोग कितनी मेहनत करते थे, खुद ही चीजों की खोज करते थे और उनका आविष्कार करते थे।
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