03-Jun-2025
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आस्था और एकता का प्रतीक: छठ पूजा में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी

सीमा ख़ातून कहती हैं, “हम बिना नहाए और बिना कुछ खाएं चूल्हे बनाते हैं, क्योंकि यह हमारे लिए धार्मिक काम है।”

छठ पूजा का महापर्व सिर्फ़ उगते और डूबते सूरज की पूजा का पर्व ही नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक सौहार्द और एकता का प्रतीक भी बन गया है। इस त्योहार में हर धर्म और समुदाय के लोग मिलकर इसे मनाते हैं। पटना के वीरचंद पटेल पथ पर कई मुस्लिम महिलाएं भी भक्तों के लिए मिट्टी के चूल्हे बनाकर छठ पूजा की तैयारियों में जुटी हुई हैं। इन चूल्हों का इस्तेमाल भक्त प्रसाद पकाने के लिए करते हैं, और इन महिलाओं के लिए यह एक खास धार्मिक सेवा है।

सीमा ख़ातून, जो चूल्हों को बनाने का काम करती हैं, बताती हैं कि उन्होंने यह काम अपनी मां से सीखा है, जो सालों से ये चूल्हे बना रही हैं। सीमा कहती हैं, “हम बिना नहाए और बिना कुछ खाएं ये चूल्हे बनाते हैं, क्योंकि यह हमारे लिए धार्मिक काम है।” इस साल दुर्गा पूजा से ही उन्होंने चूल्हा बनाना शुरू कर दिया था और अब तक 150 से 200 चूल्हे बना चुकी हैं, जिन्हें वे 50 से 150 रुपये में बेचती हैं।

एक अन्य महिला बताती हैं, “मैं पिछले छह साल से चूल्हे बना रही हूँ। यह पूजा का हिस्सा है, हम इसे बनाते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करते हैं।” छठ पूजा के दौरान भक्त शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हैं। इस चार दिन के पर्व में व्रत, उपवास और कठिन अनुष्ठान (ritual) होते हैं, जिनसे सूर्य देव को धन्यवाद दिया जाता है।

बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में मुख्य रूप से मनाए जाने वाले इस पर्व को प्रवासी भारतीय भी बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस पर्व में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाती हैं।

मुस्लिम महिलाओं की इस पर्व में भागीदारी, खासकर चूल्हे बनाने के रूप में, छठ पूजा के साम्प्रदायिक सौहार्द और एकता का संदेश देती है। यह पर्व धर्म, जाति और संप्रदाय की सीमाओं को तोड़कर इसे सही मायने में आस्था का महापर्व बनाता है।

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