आज नुरूल लस्कर का नाम जनसंपर्क (पीआर) के क्षेत्र में गर्व से लिया जाता है। वह करीब पिछले पांच दशकों से भारत के पूर्वोत्तर की पहचान और छवि को निखारने में जुटे हुए हैं। हाल ही में पब्लिक रिलेशंस काउंसिल ऑफ इंडिया ने उन्हें ‘एकीकृत जनसंपर्क’ के लिए राष्ट्रीय चाणक्य पुरस्कार से सम्मानित किया। यह पुरस्कार उन्हें कर्नाटक के मंगलुरू में आयोजित 18वें वैश्विक संचार सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने दिया। चाणक्य पुरस्कार मिलने पर नुरूल लस्कर ने कहा, “यह मेरे लिए किसी सपने के सच होने जैसा है।”
नुरूल लस्कर का जनसंपर्क का सफ़र
लस्कर को अपने बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक रहा। वह किताबों, पत्रिकाओं और अख़बारों से प्रेरणा लेते और सार्वजनिक हस्तियों के व्यवहार व जनसंपर्क कौशल का बारीकी से अध्ययन करते थे। यह रुचि उनके करियर की नींव बनी। नुरूल लस्कर का सफ़र 1970 में शुरू हुआ, जब पीआर का नाम भी ज्यादा लोग नहीं जानते थे। उस दौर में सरकारी विभागों और प्राइवेट कंपनियों में जनसंपर्क डिपार्टमेंट तक नहीं हुआ करते थे। 1972 में उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में काम शुरू किया। 1975 में शिलांग में नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में पीआर पर एक महीने का सर्टिफिकेट कोर्स किया। इस कोर्स ने नुरूल को पीआर के नए आयाम समझाए और सिखाया कि किसी संगठन की छवि कैसे बेहतर बनाई जा सकती है। एसबीआई में धीरे-धीरे तरक्की करते हुए उनकी ज़िंदगी में नया मोड़ आया और उन्होने भारत की पहली पीआर एजेंसी कैब्सफोर्ड की स्थापना की।
उन्होने आवाज़ द वॉयस को बताया कि वह भविष्य में पीआर पर कुछ और किताबें लिखना चाहते हैं, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में पीआर पढ़ाना जारी रखना चाहता हैं। नुरूल लस्कर की कहानी न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह दिखाती है कि सच्ची लगन और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है ।
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