03-Jun-2025
HomeArtसआदत हसन मंटो: मज़हब ऐसी चीज़ नहीं है कि ख़तरे में पड़...

सआदत हसन मंटो: मज़हब ऐसी चीज़ नहीं है कि ख़तरे में पड़ सके

सआदत हसन मंटो अदब की दुनिया का वो नाम, जो तल्ख़ हक़ीक़तों को बग़ैर किसी लिहाज़ और ख़ौफ के काग़ज़ पर उतारने का हौसला रखता था। वो ना सिर्फ़ एक अफ़साना निगार थे, बल्कि एक एहसास, एक सवाल, और एक दस्तावेज़ थे। ज़माने की स्याही से लिखी हुई तल्ख़ हक़ीक़त का दस्तावेज़।

सआदत हसन मंटो अदब की दुनिया का वो नाम, जो तल्ख़ हक़ीक़तों को बग़ैर किसी लिहाज़ और ख़ौफ के काग़ज़ पर उतारने का हौसला रखता था। मंटो की तहरीरें वो आईना हैं जिसमें समाज अपना असली चेहरा देखने से डरता है। वो ना सिर्फ़ एक अफ़साना निगार थे, बल्कि एक एहसास, एक सवाल, और एक दस्तावेज़ थे। ज़माने की स्याही से लिखी हुई तल्ख़ हक़ीक़त का दस्तावेज़।

बचपन से बग़ावत तक

11 मई 1912 को लुधियाना के एक मिडिल क्लास कश्मीरी मुस्लिम ख़ानदान में पैदा हुए मंटो का बचपन ज़्यादा रोशन नहीं था। वालिद एक सख़्त मिज़ाज अदालत के मुलाज़िम थे और घर का माहौल बेहद दबाव वाला था। मंटो के अंदर के बाग़ी ने शायद उसी माहौल में सांस लेना शुरू किया। स्कूल की तालीम में उनका दिल नहीं लगता था। कहते हैं कि उन्होंने तीसरी कोशिश में मैट्रिक पास की थी, वो भी थर्ड डिवीज़न। लेकिन इसी नाकामी में एक फ़िक्र पनप रही थी। सोचने और लोगों से सवाल करने की फ़िक्र।  

मंटो कहते हैं कि, “लीडर जब आंसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को ख़तरे में डालते हैं।”

किशोरावस्था में ही उन्होंने रशियन और फ्रेंच अदब का तर्जुमा करना शुरू कर दिया। विक्टर ह्यूगो और गोर्की जैसे लेखकों का उर्दू में तर्जुमा करके उन्होंने अपनी सोच को एक नया रुख़ दिया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाख़िला तो लिया, लेकिन वहां का माहौल उन्हें बांध नहीं पाया। बंबई (मुंबई) की तरफ़ रुख़ किया और वहीं से उनकी ज़िंदगी ने करवट ली।

तहरीर और तिजारत के दरमियान

बंबई (मुंबई)  मंटो के लिए सिर्फ़ एक शहर नहीं था, एक ज़िंदा किरदार था। वहां उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में बतौर स्क्रिप्ट राइटर काम करना शुरू किया। लेकिन फ़िल्मों की चकाचौंध के पीछे छिपे अंधेरे ने उनके अंदर के तहरीर कार को जगा दिया। तवायफ़ें, मज़दूर, दलाल, पागल, मजनूं। ये सब उनके अफ़सानों के किरदार बने। उन्होंने उन लोगों की ज़िंदगी लिखी जिनके बारे में बात करना भी उस वक़्त ‘बे-अदबी’ माना जाता था।

उनके अफ़साने ‘बू’, ‘काली शलवार’, ‘धुआं’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘खोल दो’, ‘टोबा टेक सिंह’ सिर्फ़ कहानियां नहीं, ज़माने की दस्तावेज़ हैं। उनकी ज़बान आम थी, लेकिन असर इतना गहरा कि पढ़ने वाले की रूह कांप उठे। 

“ठंडा गोश्त” और “बू” सआदत हसन मंटो की सबसे मशहूर और तीखी कहानियों में गिनी जाती हैं।  “ठंडा गोश्त” में ईश्वर सिंह नाम का एक सिख युवक दंगों के दौरान मुस्लिमों के एक घर में घुसता है और सभी को मार देता है। एक लड़की की आबरू लूटने की कोशिश करता है। लेकिन फिर उसे पता चलता है कि वो लड़की पहले से मर चुकी थी। वहीं “बू” कहानी एक जवान लड़के की है जिसे एक गांव की औरत की काया और शरीर से उठती एक ख़ास ‘बू’ ताउम्र नहीं भूलती।

मंटो कहते हैं कि, “आप शहर में ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियां देखते हैं… ये ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियां कूड़ा करकट उठाने के काम नहीं आ सकतीं। गंदगी और ग़लाज़त उठा कर बाहर फेंकने के लिए और गाड़ियां मौजूद हैं जिन्हें आप कम देखते हैं और अगर देखते हैं तो फ़ौरन अपनी नाक पर रूमाल रख लेते हैं… इन गाड़ियों का वुजूद ज़रूरी है और उन औरतों का वुजूद भी ज़रूरी है जो आपकी ग़लाज़त उठाती हैं। अगर ये औरतें ना होतीं तो हमारे सब गली कूचे मर्दों की ग़लीज़ हरकात से भरे होते।”

बंटवारा: जिस्म पाकिस्तान में, रूह हिंदुस्तान में

1947 का बंटवारे का साल- मंटो की तहरीर में खून बनकर बहा। उन्होंने इंसानियत का वो चेहरा देखा जो मज़हब के नाम पर हैवानियत में बदल चुका था। बंबई से लाहौर का सफ़र उन्होंने बहुत दिल शिकस्ता होकर किया। पाकिस्तान पहुंचकर उन्होंने कहा था 

“मैं बंबई को छोड़ तो आया हूं, लेकिन मेरा दिल वहीं रह गया है।”

सआदत हसन मंटो

लाहौर में उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। शराब उनकी सबसे बड़ी सहारा बन गई, जो बाद में उनकी सबसे बड़ी दुश्मन साबित हुई। लेकिन इस तन्हाई और टूटन में भी उन्होंने तहरीर से नाता नहीं तोड़ा। ‘टोबा टेक सिंह’ जैसे अफ़साने उन्होंने इन्हीं हालात में लिखा, जिसमें एक पागल की ज़ुबान से बंटवारे की सबसे दिल दहला देने वाली हक़ीक़त बयान की गई।

“उधर खड़ा था — टोबा टेक सिंह। ना इधर का रहा ना उधर का…”

सआदत हसन मंटो

मुक़द्दमे और मोहब्बत

मंटो पर फ़हाशी (अश्लीलता) के इल्ज़ाम में छह बार मुक़दमे चले। हिंदुस्तान में भी और पाकिस्तान में भी। हर मर्तबा उन्होंने अदालत में कहा —

“मैं समाज की चोली नहीं उतारता, मैं तो वो हक़ीक़त दिखाता हूं जो इस चोली के नीचे छुपी होती है।”

सआदत हसन मंटो

उनकी तहरीरें समाज की उस सच्चाई को बेपर्दा करती थीं जिसे लोग पर्दा समझते थे। उनकी बीवी सफ़िया, जो ख़ुद एक तालीमयाफ़्ता और समझदार ख़ातून थीं, हमेशा उनके साथ रहीं। उन्होंने मंटो के अजीबो-ग़रीब मिज़ाज, शराब की लत, और मोहल्ले की ज़बान सब कुछ बर्दाश्त किया, क्योंकि वह जानती थीं कि मंटो के अंदर एक बहुत बड़ा ‘कलम का मुजाहिद’ बैठा है।

18 जनवरी 1955 को मंटो इस दुनिया से रुख़्सत हुए। वो महज़ 42 साल के थे, लेकिन इतने वक़्त में उन्होंने उर्दू अदब को वो धरोहर दे दी जो सदियों तक महफूज़ रहेगी। टीबी और शराब ने उनके जिस्म को तोड़ दिया, लेकिन उनकी रूह आज भी उनकी तहरीरों में ज़िंदा है। उनकी क़ब्र पर लिखा गया — “यहां सआदत हसन मंटो दफ़न है। उसे खुद से बड़ा कोई अफ़साना निगार नहीं मिला।”

ये लाइन पहले मज़ाक समझी गई, लेकिन आज हर अदबी महफ़िल में यह सच्चाई बनकर गूंजती है। मंटो की कहानियां आज भी पढ़ी जाती हैं, उन पर नाटक होते हैं, फ़िल्में बनी हैं। 2015 में उन्हें पाकिस्तान ने मरणोपरांत ‘तमगा-ए-इम्तियाज़’ से नवाज़ा। भारत में भी कई लेखक उन्हें प्रेरणा मानते हैं। उनका लिखा हुआ हर जुमला आज भी ज़माने के मुंह पर एक तमाचा है। उन्होंने एक बार कहा था: “हम लिखने वालों की जमात उन लोगों से अलग है जो हुक्म चलाते हैं। हम वो लिखते हैं जो वो छुपाते हैं।”

मंटो सिर्फ़ अफ़साना नहीं, फ़लसफ़ा हैं

मंटो ने लिखा, “हर शख़्स के अंदर एक कहानी होती है, बस उसे सुनाने वाला चाहिए।” उन्होंने उन कहानियों को आवाज़ दी जो सदियों से दबाई जा रही थीं। मंटो ने तहरीर को हथियार बनाया और समाज के हर उस हिस्से पर चोट की जहां सड़ांध थी। उन्होंने अदब को एक नया रुख़ दिया। ऐसा रुख़ जिसमें सच्चाई तल्ख़ ज़रूर थी, लेकिन ग़लत नहीं।

मंटो आज भी ज़िंदा हैं। हर उस कलम में जो बेबाक है, हर उस आवाज़ में जो डरती नहीं, हर उस हक़ीक़त में जो पर्दों के पीछे छुपी है। मंटो को पढ़ना, मंटो को समझना नहीं है। मंटो को महसूस करना है। और जब आप मंटो को महसूस करते हैं, तो आप अपने अंदर के सच से रू-ब-रू होते हैं।

ये भी पढ़ें: बशीर बद्र: उर्दू ग़ज़ल को नई ज़बान और जज़्बात देने वाला शायर

आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।


















RELATED ARTICLES
ALSO READ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular