जज़्बा और जुनून उस बुलंदी पर ज़रूर पहुंचा देता है, जिस मुक़ाम पर आप खुद को देखना चाहते हैं। इसी की बदौलत अपनी ज़िंदगी को बदलने वाले शख़्स हैं अवैस अंबर जिन्हें खुद ये पता नहीं था कि वो किसी दिन इंडियन एजुकेशन सिस्टम की ज़रूरत बन जाएंगे।
अवैस अंबर बिहार के जहानाबाद के एक छोटे से गांव एरकी के रहने वाले हैं। शिक्षा में उनके योगदान के लिए भारत के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी भी उनकी तारीफ कर चुकी हैं। अवैस के वालिद गयासुद्दीन चाहते थे कि उनका बेटा एक अच्छे मुकाम पर पहुंचे। वो अपने आस-पास गरीब बच्चों को देखते थे कि वो शिक्षा के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाते हैं इसलिए उन्होंने 2005 में रोज़माइन एजुकेशनल ऐंड चैरिटेबल ट्रस्ट की शुरुआत की थी और 2007 में रोजमाइन ट्रस्ट एक रजिस्टर्ड संस्था बनी। रोजमाइन छात्र-छात्राओं को देश के अलग-अलग कॉलेजों में एडमिशन करवाता है। उन्हें सिर्फ खाने और रहने का खर्च उठाना पड़ता है।
यहां के स्टूडेंट दो प्रॉमिस करते हैं। पहला रोजमाइन संस्था से जुड़े छात्र अपनी शादी बिना दहेज के करेंगे और दूसरा पढ़ाई लेने और अपने पैरों पर खड़ा हो जाने के बाद वो किसी एक गरीब बच्चे का भविष्य संवारेगें। किसी भी धर्म, जाति के छात्र हों बस अगर आपके पास पढ़ाई के लिए पैसे की परेशानी हो आपके लिए रोजमाइन है। हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव के बिना रोजमाइन देश की क़ौमी एकता का प्रतीक है।
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