भारत की मिट्टी हमेशा से बहादुर बेटों को जन्म देती आई है, लेकिन जब यही मिट्टी बेटियों को भी शौर्य और पराक्रम से सजाती है, तो नज़ारा और भी ख़ास हो जाता है। पंजाब के होशियारपुर ज़िले के छोटा-सा गांव जनौरी इन दिनों काफी चर्चा में है। वजह है गांव की बेटी- लेफ्टिनेंट पारुल धड़वाल। जिन्होंने भारतीय सेना में कमीशन पाकर, और अपने परिवार की पहली महिला ऑफ़िसर बनकर इतिहास रच दिया है।
OTA चेन्नई का ऐतिहासिक दिन
13 सितंबर 2025 शनिवार की सुबह चेन्नई का परमेश्वरन ड्रिल स्क्वायर अपने पूरे वैभव में सजा हुआ था। ये वही मैदान था जहां 155 कैडेट्स महीनों की कठिन ट्रेनिंग के बाद पासिंग आउट परेड में शामिल होने वाले थे। उनमें से 25 महिला कैडेट्स थीं, जिनके चेहरे पर गर्व, आंखों में सपने और दिल में मातृभूमि के लिए समर्पण था।

ये परेड सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं थी। नौ मित्र देशों से आए 21 विदेशी कैडेट्स – 9 पुरुष और 12 महिलाएं भी इस अवसर का हिस्सा बने। ये सीन अपने आप में भारत और अन्य मुल्कों के बीच दोस्ती और सैन्य सहयोग का प्रतीक था। मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद थे भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह। उन्होंने अनुशासन और सटीकता से भरी इस परेड की सलामी ली और कैडेट्स को अपने जज़्बे के लिए बधाई दी।
पारुल धडवाल – परेड की शान
हालांकि उस दिन कई कैडेट्स ने अपनी उपलब्धियों से सबका दिल जीता, लेकिन सबकी नज़रें जिस शख़्सियत पर टिक गईं, वो थीं – लेफ्टिनेंट पारुल धडवाल। उन्होंने न सिर्फ़ इंडियन आर्मी की आयुध कोर में कमीशन पाया, बल्कि पूरे कोर्स की मेरिट लिस्ट में पहला स्थान हासिल कर सबको हैरत में डाल दिया। यही नहीं, उनके नाम जुड़ा एक और बड़ा सम्मान – राष्ट्रपति स्वर्ण पदक (President’s Gold Medal)।
ये तमाम उपलब्धियां सिर्फ़ मेडल या रैंक की बात नहीं थीं, बल्कि इस बात का ऐलान थीं कि मेहनत, अनुशासन और जुनून के आगे कोई भी सीमा नहीं रहती।
पांच पीढ़ियों की अमानत
पारुल की सफलता सिर्फ़ उनकी व्यक्तिगत मेहनत का नतीजा नहीं है, बल्कि ये उनके ख़ानदान की उस सैन्य परंपरा की अगली कड़ी है, जो पिछले 125 सालों से जारी है।
- सबसे पहले उनके परदादा सूबेदार हरनाम सिंह ने 1896 से 1924 तक 74 पंजाबी यूनिट में सेवा दी।
- उसके बाद मेजर एल.एस. धडवाल (3 जाट) ने वर्दी का सम्मान बढ़ाया।
- परिवार की ये विरासत आगे कर्नल दलजीत सिंह धडवाल (7 JAK Rif) और ब्रिगेडियर जगत जामवाल (3 कुमाऊं) तक पहुंची।
- मौजूदा दौर में पारुल के पिता मेजर जनरल के.एस. धडवाल (SM, VSM) और भाई कैप्टन धनंजय धडवाल (20 सिख) सेना में सेवा कर रहे हैं।
ज़रा तसव्वुर कीजिए, एक ही परिवार से तीन पीढ़ियों के ऑफ़िसर एक साथ ड्यूटी पर हों और अब उसी ख़ानदान की बेटी बतौर पहली महिला ऑफ़िसर शामिल हो जाए, ये नज़ारा वाक़ई इतिहास का हिस्सा है।
परेड का समापन हुआ पारंपरिक पिपिंग सेरेमनी से। वो पल बेहद भावुक और गौरवपूर्ण था जब पारुल के कंधों पर सितारे सजाए गए। जैसे ही उन्होंने भारतीय संविधान की रक्षा और मुल्क की सेवा की शपथ ली, पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा।
OTA चेन्नई का आदर्श वाक्य – “Serve with Honour” – अब उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है। ये शपथ सिर्फ़ शब्द नहीं थी, बल्कि एक बेटी का अपने वतन से किया वादा था।
एक बेटी की जीत, पूरे समाज की प्रेरणा
लेफ्टिनेंट पारुल की सफलता उनके गांव, उनके परिवार और भारतीय सेना की प्रतिष्ठा के लिए गर्व का विषय है। लेकिन इससे भी बढ़कर यह हर उस बेटी के लिए प्रेरणा है, जो यूनिफ़ॉर्म पहनने का सपना देखती है। कभी ये माना जाता था कि सेना का मैदान सिर्फ़ बेटों के लिए है। मगर पारुल जैसी बेटियां अब यह साबित कर रही हैं कि हौसला और लगन के आगे लिंग की कोई दीवार नहीं होती। उनके कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए रोशनी की मशाल बन चुके हैं।
लेफ्टिनेंट पारुल धडवाल की कहानी किसी साधारण सफलता की दास्तान नहीं है। ये कहानी है पांच पीढ़ियों की अमानत की, एक बेटी के जज़्बे की, और उन सपनों की जो हक़ीक़त बनकर सामने आए। जनौरी गांव की ये बेटी आज पूरे मुल्क की बेटी बन गई है। उनकी कामयाबी भारतीय सेना के इतिहास में दर्ज हो चुकी है और ये सफ़र आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
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