मुस्लिम समाज में शरीर और अंगदान की प्रथा धार्मिक मान्यताओं के कारण अभी भी काफी कम है। इसी विषय पर मेरे पिताजी आफताब अहमद और माताजी मुस्फिका सुल्ताना एक अद्भुत उदाहरण हैं। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान और अध्ययन के लिए अपने शरीर को दान किया। यह संकल्प उनकी प्रगतिशील सोच और धार्मिक विश्वासों की अवधारणा को साकार करता है।
अब मेरी बेटी लुबना शाहीन अपने कई रिश्तेदारों और दोस्तों के हवाले से इस प्रथा को रोकने के लिए धार्मिक मुद्दों का समर्थन करने के बावजूद, अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पूर्णतया दृढ़ संकल्पित हैं।
उनकी साहसिकता और संघर्ष को देखते हुए हमें गर्व होता है। वे एक मानवीय सेवा के लिए नया मार्ग प्रशस्त करती हैं और सबको धार्मिक विश्वासों की आदर्श तरीके से समझाने की प्रेरणा देती हैं।
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