संगीत केवल सुरों का मेल नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने की ताकत भी रखता है। राजस्थान के नागौर ज़िले से ताल्लुक रखने वाली भजन और मांड गायिका बतूल बेगम ने पूरी दुनिया इस बात को साबित किया है। उनके सुरों में भक्ति की मिठास और लोकसंगीत की गहराई है, जिसने सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक बदलाव की धुन छेड़ी। हाल ही में केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कार 2025 की घोषणा की, जिसमें बतूल बेगम को भी इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाज़ा जाएगा।
मीरासी समुदाय से आने वाली बतूल बेगम के परिवार की आर्थिक स्थिति मज़बूत नहीं थी, लेकिन संगीत के प्रति उनकी दीवानगी बचपन से ही झलकने लगी थी। सिर्फ आठ साल की उम्र में उन्होंने भजन गाने शुरू किए। भगवान राम और गणपति के भजन गाने की वजह से उन्हें “भजनों की बेगम” कहा जाने लगा।
संघर्ष, ज़िम्मेदारी और संगीत का सफ़र
महज़ पांचवीं तक की पढ़ाई करने के बाद 16 साल की उम्र में शादी हो गई। वह न सिर्फ़ गायकी, बल्कि ढोल, ढोलक और तबला जैसे वाद्य यंत्रों में भी उन्होंने अपनी कुशलता साबित की। छोटे-छोटे समारोहों से शुरुआत करने वाली बतूल बेगम ने अपने सुरों को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाया। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ट्यूनीशिया, इटली, स्विट्जरलैंड, और जर्मनी जैसे देशों में उन्होंने भारत के लोकसंगीत की गूंज पहुंचाई। वे ‘बॉलीवुड क्लेजमर’ नामक एक अंतरराष्ट्रीय फ्यूजन लोकसंगीत बैंड का हिस्सा भी हैं, जो विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के कलाकारों को एक मंच पर लाता है।
संगीत से बदलाव की कोशिश
बतूल बेगम सिर्फ एक बेहतरीन गायिका ही नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और बालिका शिक्षा की समर्थक भी हैं। पांच दशकों से वे सांप्रदायिक सद्भावना और सामाजिक सौहार्द का संदेश अपने सुरों के जरिए देती आ रही हैं। बतूल बेगम को 2021 में नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी कला ने यह साबित कर दिया कि संगीत किसी धर्म या जाति की सीमाओं में नहीं बंधता।
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