अपनी रोजी रोटी के लिए जम्मू-कश्मीर की दिलाफ्रोस क़ाज़ी (Dilafros Qazi) ने महज 25 साल की उम्र में SSM College की शुरुआत की थी, जो अब उनकी ज़िंदगी बन गया है। उनका ये सफ़र इतना आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा।
1988 का वो समय जब कश्मीर में आतंक का कहर शुरू हुआ। तब दिलाफ्रोस क़ाज़ी के पिता, भाई और उनके पति को आतंकवादियों ने किडनैप कर लिया और फिरौती की भारी रकम मांगी। उनके लिए वो बहुत बुरा वक्त था। उन्हें अपनी खून पसीने की कमाई देनी पड़ी लेकिन इसके बाद भी आतंकवादियों की मांग खत्म नहीं हुई।
इसके बाद उनकी ज़िंदगी में बड़ी चुनौती तब आई जब कुछ बड़ी ताकतों ने उनकी कॉलेज की ज़मीन पर कब्जा करना चाहा। ऐसे में उनके परिवार पर निशाना साधा गया, उन पर फायरिंग कराई गई। उनके कॉलेज को भी तबाह करने की पूरी कोशिश की गई। ऐसे में उनके शुभचिंतकों ने उन्हें वहां से जाने की सलाह दी। मगर गांव के लोगों ने उनका साथ दिया, उनका सहयोग किया जिनके लिए दिलाफ्रोज़ ने प्राइमरी स्कूल खुलवाए।
दिलाफ्रोस क़ाज़ी राष्ट्रीयता में पूरा विश्वास रखती हैं। वो खुद एक एनसीसी कैडेट थी उनकी रग-रग में भारत है और वो अपने छात्रों को भी यही शिक्षा देती हैं कि शांति, सौहार्द और ज्ञान से ही हर बुरी शक्ति को हराया जा सकता है। कॉलेज के छात्रों का भविष्य उज्ज्वल बनाना ही उनके जीवन का लक्ष्य है, जिसके लिए वो अब 60 साल की उम्र में भी कदम-कदम पर चुनौतियों का डट कर सामना करती हैं।
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