13-Nov-2025
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Shahid Bashir: कश्मीर के मल्टी-स्पोर्ट्स कोच का ओपन ग्राउंड से नेशनल स्टेज तक का सफ़र

Shahid Bashir ने अब तक करीब 3,000 बच्चों को ट्रेनिंग दी है। इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल तक जीते हैं।

जम्मू-कश्मीर की ख़ूबसूरत वादियों में अगर कोई खेलों के ज़रिए नई उम्मीद जगा रहा है, तो वो हैं Shahid Bashir, गांदरबल ज़िले के मल्टी-स्पोर्ट्स कोच। Shahid सिर्फ़ एक कोच नहीं हैं, बल्कि ऐसे इंसान हैं जो बच्चों को आगे बढ़ने का हौसला देते हैं। उनका मानना है कि खेल न सिर्फ़ शरीर को मज़बूत बनाते हैं, बल्कि सोच को भी पॉजिटिव रखते हैं।

पिछले पांच सालों में Shahid ने लगभग 3000 से ज़्यादा युवाओं को ट्रेनिंग दी है। हर साल उनके खिलाड़ी नेशनल लेवल की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं और कई बार मेडल भी जीतते हैं।उनकी मेहनत और लगन का ही नतीजा है कि आज कश्मीर के कई छोटे-छोटे गांवों से बच्चे खेलों के मैदान तक पहुंच रहे हैं और देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

खेल से ज़िंदगी तक का सफ़र

Shahid Bashir बताते हैं, ‘मैंने अब तक 14 नेशनल और 2 इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया है। बचपन से ही खेलों का बहुत शौक़ था। एक बार स्कूल में ट्रायल चल रहे थे, मैंने उसमें हिस्सा लिया और मेरी सिलेक्शन डिस्ट्रिक्ट लेवल के लिए हो गई। फिर स्टेट और नेशनल लेवल तक सफ़र बढ़ता गया।’ खेल के प्रति उनका जुनून इतना गहरा था कि एक वक़्त पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ने तक का सोच लिया था। लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि उन्हें पढ़ाई और खेल दोनों को साथ लेकर चलना पड़ा। Shahid कहते हैं, ‘ये आसान नहीं था, लेकिन मैंने ठान लिया था कि हार नहीं मानूंगा। मैंने अपनी पढ़ाई भी की और खेल में भी आगे बढ़ता गया।’

ट्रेनिंग और संघर्ष की कहानी

Shahid Bashir ने अब तक करीब 3,000 बच्चों को ट्रेनिंग दी है। इनमें से कई बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल तक जीते हैं। Shahid Bashir बताते हैं कि उनके पास न तो बेहतर ग्राउंड की सुविधा है और न ही इंडोर स्टेडियम। वो कहते हैं’ हमारे यहां इंडोर गेम्स जैसे मार्शल आर्ट्स के लिए कमरे या स्टेडियम नहीं हैं। लेकिन हमने हार नहीं मानी। वो बच्चों को खुले मैदान में ट्रेनिंग देते हैं, और माशा अल्लाह वो बच्चे आज नेशनल लेवल तक पहुंचे हैं।’

Shahid के पास क्रिकेट, फुटबॉल, वॉलीबॉल, खो-खो, जोड़ो, कलर, पेटो, खंगता और चेस जैसे कई खेलों के खिलाड़ी ट्रेनिंग लेने आते हैं। लेकिन उनका सबसे ज़्यादा फोकस मार्शल आर्ट्स पर रहता है। वो कहते हैं, ‘मार्शल आर्ट्स एक इंडिविजुअल गेम है, इसमें हर बच्चा अपनी मेहनत से चमक सकता है।’

महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण

Shahid ने गांव-गांव जाकर लोगों को समझाया कि खेलों में बेटियां भी बेटों की तरह आगे बढ़ सकती हैं। आज उनकी कई लड़कियां नेशनल लेवल पर खेल रही हैं और गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। Shahid Bashir कहते हैं, उन्होंने इन लड़कियों को गांवों से निकाला और मैदान तक पहुंचाया। अब वो कश्मीर की पहचान बन चुकी हैं। Shahid की स्टूडेंट कहती हैं, मेरी जर्नी सातवीं क्लास से शुरू हुई थी। तभी से खेल मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया। मैंने कई ज़िला और स्टेट लेवल की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और ज़्यादातर में गोल्ड मेडल जीते। मेरी सफलता के पीछे मेरे वालिदैन की दुआ और शाह सर की मेहनत है।’

मुफ़्त ट्रेनिंग और नई दिशा

Shahid Bashir बिना किसी फ़ीस के बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं। वो कहते हैं, ‘मैं बच्चों से कोई चार्ज नहीं लेता। जहां भी समय मिलता है, मैं जाकर उन्हें सिखाता हूं। कभी उनके घर जाता हूं, कभी उन्हें बुला लेता हूं।’ उनकी मेहनत का नतीजा ये है कि अब उनके इलाके से हर साल 3–4 बच्चे नेशनल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं और मेडल जीतकर लौटे हैं। Shahid Bashir की कहानी सिर्फ़ एक कोच की नहीं, बल्कि उस इंसान की है जिसने खेलों के ज़रिए समाज को नई दिशा दी है।

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