केरल में मुस्लिम स्टूडेंट्स अब संस्कृत भाषा को अपनाकर शिक्षा और करियर में नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। संस्कृत को सब्जेक्ट के रूप में चुनने वाले ये स्टूडेंट्स नौकरी पाने और रिसर्च में आगे बढ़ने के कई अवसर पा रहे हैं। संस्कृत के साथ इंटरमीडिएट करने वाले स्टूडेंट्स के लिए स्कूलों में टीचर बनने का रास्ता भी खुल रहा है। शंकराचार्य के नाम पर बने शंकर यूनिवर्सिटी के केरल में छह केंद्र हैं, जिनमें से कुछ का नेतृत्व मुस्लिम कर रहे हैं। तिरूर सेंटर के प्रमुख डॉ. अब्दुल्ला शाह बताते हैं कि संस्कृत पढ़ने वाले मुस्लिम स्टूडेंट्स की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। कई स्टूडेंट्स पीजी और डॉक्टरेट लेवल पर संस्कृत को अपना रहे हैं और इससे उन्हें संस्कृत डिपार्टमेंट में नौकरी के अवसर भी मिल रहे हैं।
केरल सरकार द्वारा संचालित तीन संस्कृत कॉलेजों में भी मुस्लिम स्टूडेंट्स की भागीदारी बढ़ी है। कालीकट विश्वविद्यालय के संस्कृत डिपार्टमेंट में दो मुस्लिम टीचर, डॉ. केके अब्दुल मजीद और डॉ. एन ए शिहाब कई मुस्लिम स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं। डॉ. मजीद बताते हैं कि उनके स्टूडेंट्स मोहम्मद शमीम ने तीन बार नेट और जेआरएफ पास किया और स्कूल में नौकरी हासिल की। संस्कृत को अपनाने वाले इन स्टूडेंट्स का मानना है कि यह भाषा सिर्फ हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है। डॉ. मजीद के अधीन रिसर्च कर रहे मोहम्मद शमीम कहते हैं कि संस्कृत का उपयोग विज्ञान, गणित और तर्कशास्त्र जैसे सब्जेक्ट्स में भी किया गया है। संस्कृत के ज़रिए मुस्लिम स्टूडेंट्स ने न सिर्फ अपनी सोच को व्यापक बनाया है, बल्कि नई संभावनाओं के दरवाज़े भी खोले हैं। केरल में यह बदलाव न सिर्फ शिक्षा बल्कि संस्कृति के आदान-प्रदान का भी एक ख़ूबसूरत नमूना है।
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