जब भी Sufi संगीत की बात होती है, दिलो-दिमाग में एक रूहानी एहसास भर जाता है, जैसे कोई सुकून भरी हवा रूह को को छू जाती हो। और आज की सूफ़ियाना दुनिया में एक चमकता नाम है, जिस पर न सिर्फ़ उत्तराखंड, बल्कि पूरा देश गर्व करता है,वो हैं Dr. Neeta Pandey Negi । एक आवाज़, जो सिर्फ़ गाने नहीं गाती, बल्कि हर सुर में इबादत रचती हैं। DNN24 के पॉडकास्ट Diverse Dialogues में हमारी मुलाक़ात हुई इसी ख़ास शख़्सियत से, जिन्होंने अपने जीवन, संगीत और सूफ़ी साधना के बारे में दिल खोलकर बात की।
बचपन की चुप्पी से लेकर सुरों के सफ़र तक
Dr. Neeta Pandey Negi बताती हैं कि उनका बचपन बेहद शांत और शर्मीला था। उन्हें कभी नहीं लगा था कि वो म्यूज़िक के क्षेत्र में जाएंगी। उन्होंने कहा, “कभी-कभी आपको नहीं पता होता कि ज़िंदगी किस दिशा में जाएगी। मेरी जिंदगी में मेरी मां ने मुझे आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई।”

स्कूल टीचर ने उनकी आवाज़ की तारीफ़ की और गाने सीखने की सलाह दी। फिर स्कूल में प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। धीरे-धीरे स्टेज पर जाना, छोटे-छोटे कार्यक्रमों में गाना और फिर एक दिन कला संगम ग्रुप के साथ मंच पर ‘लंबी जुदाई’ गाना गाकर फेमस हो जाना। ये उनका शुरुआती सफ़र रहा। इस गाने की वजह से लोग उनको जानने लगे थे। जब भी वो स्टेज पर जाती तो लोगों को पता चल जाता था कि ‘लंबी जुदाई’ गाना गाएंगी।
शादी और संगीत के बीच तालमेल
Dr. Neeta Pandey Negi बताती हैं कि उनकी लव मैरिज हुई है और उनके पति और ससुराल वालों ने कभी संगीत को लेकर रोका नहीं। “जब आप उस राह पर होते हैं जहां ख़ुदा आपके साथ होता है, तो रास्ते ख़ुद-ब-ख़ुद आसान हो जाते हैं।” उनका परिवार देहरादून में रहता है, जबकि उन्हें अपने संगीत कार्यक्रमों के लिए दिल्ली और अन्य शहरों में आना-जाना पड़ता है। वह इस संतुलन को बड़ी ख़ूबसूरती से निभा रही हैं।
जब नौकरी छोड़कर चुना संगीत को
नीता पांडे एक कंपनी में जॉब करती थी लेकिन जॉब को लेकर उनका तजु़र्बा अच्छा नहीं रहा। उन्होंने जॉब और म्यूज़िक में से संगीत को चुना। उनके लिए जॉब छोड़ना बहुत मुश्किल फैसला था। उनका मानना था कि ज़िंदगी में कुछ नया नहीं हो रहा था और जब उनकी ग्रोथ रुक जाती है तो वो उस काम को छोड़ देती है। उनके मुताबिक ज़िंदगी में ग्रोथ होना बहुत ज़रूरी है।
और अगर आपकी नियत अच्छी है तो पैसा अपने आप आ जाता है। उन्होंने कहा कि “भगवान की दया से मुझे कभी पैसों की कमी नहीं हुई चाहे शोज़ आ रहे रहे हो चाहे ना आ रहे हो कोरोना में वो 60000 रुपये महीने कमा रही थी।” नीता पांडे नेगी बताती हैं कि उन्होंने दूरदर्शन उत्तराखंड और ऑल इंडिया रेडियो के लिए कई सूफियाना प्रोग्राम किए। वो डीडी उत्तराखंड की ग्रेडेड आर्टिस्ट भी रह चुकी हैं।

आवाज़ का बदलाव और रियाज़ की अहमियत
नीता बताती हैं कि पहले उनकी आवाज़ बहुत पतली थी, जिससे उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता था। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, रियाज़ से उनकी आवाज़ में गहराई आई। वक्त के साथ-साथ जब हम बड़े होते है तो आवाज़ में भी एक मैच्योरिटी आ जाती है। उनका मानना है कि “खरज़ का रियाज़ बहुत ज़रूरी है, इससे आवाज़ में बेस आता है, और सूफ़ियाना गायन में वही ज़रूरी है।” गाना गाने के लिए सबसे ज़रूरी है आपका परफेक्ट स्केल।
Sufi संगीत क्या है?
नीता कहती हैं, “Sufi संगीत आपको बिना शर्त प्रेम करना सिखाता है। इसमें कोई उम्मीद नहीं होती कि सामने वाला बदले में क्या देगा। यह इश्क की सबसे अच्छी शक्ल है।” Sufi संतों की वाणी, कव्वाली, गज़लें — सब कुछ इसी विचारधारा से जुड़ा है। नीता कहती हैं कि “अगर आप किसी Sufi संत का लिखा हुआ कलाम गा रहे हैं, तो वह असली Sufi संगीत है। कव्वाली, गज़लें ये सब सूफ़ी संगीत में आता है। अगर कैलाश खेर जी अगर कुछ गाते हैं तो उनको बोलते है कि सूफी गा रहे हैं.. नहीं वो स्टाइल है। सिर्फ़ ‘अली’ ‘मौला’ बोल देने से या ऊंचा गा लेने से कोई सूफ़ी नहीं हो जाता, वो सिर्फ़ एक स्टाइल होता है।”
इसके अलावा सूफ़ी के बहुत सारे मतलब हैं कुछ ‘सफ़ा’ बोलते हैं, कुछ लोग जैसे प्योरिटी बोलते हैं सूफ़ी का मतलब ये भी कहते हैं कि जो Sufi संत उस वक्त ऊनी कपड़े पहनते थे वो उनको ऐसा लगता था कि इस पूरी दुनिया का दर्द अपने बदन में समेट के चल रहे हैं तो उनको सूफ़ी बोला जाता था। सूफ़ी संगीत उर्दू, फारसी, हिंदी, पंजाबी, ब्रज भाषाओं में होता है।
सोशल मीडिया और संगीत का नया दौर
नीता पांडे नेगी मानती हैं कि वक्त के साथ-साथ हर चीज़ में नयापन ज़रूरी है। “सोशल मीडिया यूथ के लिए है, इसलिए अगर आप उन्हें जोड़ना चाहते हैं तो आपको उनके तरीके से बात करनी होगी। इसलिए सूफ़ी संगीत को भी थोड़ा मॉडर्न टच दिया जा सकता है, ताकि नई पीढ़ी जुड़ सके।” नीता कहती हैं कि “गाना बनाने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ होता है मूड। कोई भी कंपोजर ये सोचकर गाना नहीं बनाता कि उसे किसी से अच्छा गाना बनाना है, बस उसे बनाना होता है।”
वो पहले शब्दों को समझती हैं, उसके पीछे की इमोशन को महसूस करती हैं। “अगर कोई रोमांटिक गाना है, तो उसमें समर्पण, विरह या जुड़ाव की भावना को समझना ज़रूरी होता है।” नीता कहती हैं कि बॉलीवुड ने सूफ़ी संगीत को ज़िंदा रखा है। “जब भी सूफ़ी गाने फिल्मों में आते हैं, तो उन्हें पूरी गंभीरता और परंपरा के साथ दिखाया जाता है, चाहे वो ड्रेसिंग हो या माहौल। ये बहुत अच्छा इशारा है।
गुरुओं से मिला ज्ञान
नीता के लिए संगीत सिर्फ़ करियर नहीं, एक साधना है। सूफी संगीत, जिसे वो गाती हैं, उसकी रूह इबादत में रची-बसी होती है। उन्होंने बताया, “जब मैं गाती हूं, तो ऐसा लगता है जैसे मैं खुदा से बात कर रही हूं। जैसे हर सुर मेरे रूह से निकलता है।” नीता जी अपने गुरु उस्ताद चांद ख़ान साहब को बहुत मानती हैं। उन्होंने बताया कि “गुरुजी से मैंने सीखा कि किसी के लिए इतना इमोशनल कैसे हो सकते हैं कि उसके बारे में बात करते हुए आपकी आंखें भर आएं। ये भावनात्मक गहराई मैंने सूफ़ी संतों में भी देखी है।” उन्होंने हर चीज़ के ऊपर गाना लिखा हुआ है जैसे ‘सकल बन फूल रही सरसों’
नीता मानती हैं कि सूफ़ी संगीत भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का एक बेहतरीन उदाहरण है। “आजकल कुछ लोग इसे धर्म से जोड़ते हैं, लेकिन असल में ये संगीत लोगों को जोड़ता है, न कि बांटता है। इसमें शांति और एकता की बात होती है।” Dr. Neeta Pandey Negi की ज़िंदगी और संगीत हमें यह सिखाता है कि जब इरादे सच्चे हों और दिल से किया गया काम हो, तो राहें ख़ुद-ब-ख़ुद बनती जाती हैं। उनका सफ़र आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है — कि संगीत सिर्फ़ करियर नहीं, बल्कि एक इबादत भी हो सकता है।
ये भी पढ़ें: कैफ़ी आज़मी – एक सुर्ख़ फूल जो ज़हन और ज़मीर में खिलता रहा
आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।